मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

‘हरे ! जगत्पते !! नारायण’ !!!





जब भगवान्‌ के लीलाशरीरों से किये हुए अद्भुत पराक्रम, उनके अनुपम गुण और चरित्रों को श्रवण करके अत्यन्त आनन्द के उद्रेक से मनुष्य का रोम-रोम खिल उठता है, आँसुओं के मारे कण्ठ गद्गद हो जाता है और वह सङ्कोच छोडक़र जोर-जोर से गाने-चिल्लाने और नाचने लगता है; जिस समय वह ग्रहग्रस्त पागल की तरह कभी हँसता है, कभी करुण-क्रन्दन करने लगता है, कभी ध्यान करता है तो कभी भगवद्भाव से लोगों की वन्दना करने लगता है; जब वह भगवान्‌ में ही तन्मय हो जाता है, बार-बार लंबी साँस खींचता है और सङ्कोच छोडक़र हरे ! जगत्पते !! नारायण’ !!! कहकर पुकारने लगता हैतब भक्तियोग के महान् प्रभाव से उसके सारे बन्धन कट जाते हैं और भगवद्भाव की ही भावना करते-करते उसका हृदय भी तदाकारभगवन्मय हो जाता है। उस समय उसके जन्म-मृत्यु के बीजों का खजाना ही जल जाता है और वह पुरुष श्रीभगवान्‌ को प्राप्त कर लेता है ॥

......श्रीमद्भागवत ७/७/३४३६



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