गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

दस नामापराध (पोस्ट..०२)


|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

दस नामापराध (पोस्ट..०२)

‘असति नामवैभवकथा’‒(२) जो भगवन्नाम नहीं लेता, भगवान्‌की महिमा नहीं जानता, भगवान्‌की निन्दा करता है, जिसकी नाममें रुचि नहीं है, उसको जबरदस्ती भगवान्‌के नामकी महिमा मत सुनाओ । वह सुननेसे तिरस्कार करेगा तो नाम महाराजका अपमान होगा । वह एक अपराध बन जायगा । इस वास्ते उसके सामने भगवान्‌के नामकी महिमा मत कहो । साधारण कहावत आती है -

हरि हीराँ री गाठडी, गाहक बिना मत खोल ।
आसी हीराँ पारखी, बिकसी मँहगे मोल ॥

भगवान्‌के ग्राहकके बिना नाम-हीरा सामने क्यों रखे भाई ? वह तो आया है दो पैसोंकी मूँगफली लेनेके लिये और आप सामने रखो तीन लाख रत्न-दाना ? क्या करेगा वह रतन का ? उसके सामने भगवान्‌का नाम क्यों रखो भाई ? ऐसे कई सज्जन होते हैं जो नामकी महिमा सुन नहीं सकते । उनके भीतर अरुचि पैदा हो जाती है ।

अन्नसे पले हैं, इतने बड़े हुए; परन्तु भीतर पित्तका जोर होता है तो मिश्री खराब लगती है, अन्नकी गन्ध आती है । वह भाता नहीं, सुहाता नहीं । अगर अन्न अच्छा नहीं है तो इतनी बड़ी अवस्था कैसे हो गयी ? अन्न खाकर तो पले हो,फिर भी अन्न अच्छा नहीं लगता ? कारण क्या है ? पेट खराब है । पित्तका जोर है ।

तुलसी पूरब पाप ते, हरिचर्चा न सुहात ।
जैसे जुरके जोरसे, भोजनकी रुचि जात ॥

ज्वरमें अन्न अच्छा नहीं लगता । ऐसे ही पापीको बुखार है, इस वास्ते उसे नाम अच्छा नहीं लगता । तो उसको नाम मत सुनाओ । मिश्री कड़वी लगती है सज्जनो ! और मिश्री कड़वी है तो क्या कुटक, चिरायता मीठा होगा ? परन्तु पित्तके जोरसे जीभ खराब है । पित्तकी परवाह नहीं मिश्री खाना शुरू कर दो । खाते-खाते पित्त शान्त हो जायगा और मिश्री मीठी लगने लग जायगी ।

ऐसे किसीका विचार हो, रुचि न हो तो नाम-जप करना शुरू कर दे इस भावसे कि यह भगवान्‌का नाम है । हमें अच्छा नहीं लगता है, हमारी अरुचि है तो हमारी जीभ खराब है । यह नाम तो अच्छा ही है‒ऐसा भाव रखकर नाम लेना शुरू कर दें और भगवान्‌से प्रार्थना करें कि हे नाथ ! आपके चरणोंमें रुचि हो जाय, आपका नाम अच्छा लगे । ऐसे भगवान्‌से कहता रहे, प्रार्थना करता रहे तो ठीक हो जायगा ।

नारायण ! नारायण !!

(शेष आगामी पोस्ट में)
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “भगवन्नाम” पुस्तकसे


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