गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

दस नामापराध (पोस्ट..०३)


|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

दस नामापराध (पोस्ट..०३)

‘श्रीशेशयोर्भेदधी’‒(३) भगवान् विष्णुके भक्त हैं तो शंकरकी निन्दा न करें । दोनोंमें भेद-बुद्धि न करें । भगवान् शंकर और विष्णु दो नहीं हैं‒

उभयोः प्रकृतिस्त्वेका प्रत्ययभेदेन भिन्नवद्‌भाति ।
कलयति कश्चिन्मूढो हरिहरभेदं विना शास्त्रम् ॥

भगवान् विष्णु और शंकर इन दोनोंका स्वभाव एक है । परन्तु भक्तोंके भावोंके भेदसे भिन्नकी तरह दीखते हैं । इस वास्ते कोई मूढ़ दोनोंका भेद करता है तो वह शास्त्र नहीं जानता । दूसरा अर्थ होता है ‘हृञ् हरणे’ धातु तो एक है पर प्रत्यय-भेद है । हरि और हर ऐसे प्रत्यय-भेदसे भिन्नकी तरह दीखते हैं । ‘हरि-हर’ के भेदको लेकर कलह करता है वह ‘विना शास्त्रम्’ पढ़ा लिखा नहीं है और ‘विनाशाय अस्त्रम्’‒अपना नाश करनेका अस्त्र है ।

भगवान् शंकर और विष्णु इन दोनोंका आपसमें बड़ा प्रेम है । गुणोंके कारणसे देखा जाय तो भगवान् विष्णुका सफेद रूप होना चाहिये और भगवान् शंकरका काला रूप होना चाहिये; परन्तु भगवान् विष्णुका श्याम वर्ण है और भगवान् शंकरका गौर वर्ण है, बात क्या है । भगवान् शंकर ध्यान करते हैं भगवान् विष्णुका और भगवान् विष्णु ध्यान करते हैं भगवान् शंकरका । ध्यान करते हुए दोनोंका रंग बदल गया । विष्णु तो श्यामरूप हो गये और शंकर गौर वर्णवाले हो गये‒‘कर्पूरगौरं करुणावतारम् ।’

अपने ललाटपर भगवान् रामके धनुषका तिलक करते हैं शंकर और शंकरके त्रिशूलका तिलक करते हैं रामजी । ये दोनों आपसमें एक-एकके इष्ट हैं । इस वास्ते इनमें भेद-बुद्धि करना, तिरस्कार करना, अपमान करना बड़ी गलती है । इससे भगवन्नाम महाराज रुष्ट हो जायँगे । इस वास्ते भाई,भगवान्‌के नामसे लाभ लेना चाहते हो तो भगवान् विष्णुमें और शंकरमें भेद मत करो ।

कई लोग बड़ी-बड़ी भेद-बुद्धि करते हैं । जो भगवान् कृष्णके भक्त हैं, भगवान् विष्णुके भक्त हैं, वे कहते हैं कि हम शंकरका दर्शन ही नहीं करेंगे । यह गलतीकी बात है । अपने तो दोनोंका आदर करना है । दोनों एक ही हैं । ये दो रूपसे प्रकट होते हैं‒‘सेवक स्वामि सखा सिय पी के ।’

‘अश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिराम्’‒वेद, शास्त्र और सन्त-महापुरुषोंके वचनोंमें अश्रद्धा करना अपराध है ।

(४) जब हम नाम-जप करते हैं तो हमारे लिये वेदोंके पठन-पाठनकी क्या आवश्यकता है ? वैदिक कर्मोंकी क्या आवश्यकता है । इस प्रकार वेदोंपर अश्रद्धा करना नामापराध है ।

(५) शास्त्रोंने बहुत कुछ कहा है । कोई शास्त्र कुछ कहता है तो कोई कुछ कहता है । उनकी आपसमें सम्मति नहीं मिलती । ऐसे शास्त्रोंको पढ़नेसे क्या फायदा है ? उनको पढ़ना तो नाहक वाद-विवादमें पड़ना है । इस वास्ते नाम-प्रेमीको शास्त्रोंका पठन-पाठन नहीं करना चाहिये, इस प्रकार शास्त्रोंमें अश्रद्धा करना नामापराध है ।

नारायण ! नारायण !!

(शेष आगामी पोस्ट में)
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “भगवन्नाम” पुस्तकसे


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