||श्री हरि: ||
गुरु को ढूँढ़ना नहीं पड़ता
श्रोता‒ आजकल दुनियामें ढूँढ़नेपर भी गुरु नहीं मिलता । मिलता है तो ठग मिलता है । हम गुरु ढूँढ़नेके लिये कई तीर्थोंमें गये, पर कोई मिला ही नहीं । आप कहते हैं कि जगद्गुरु कृष्णको अपना गुरु मान लो । अगर आप यह घोषणा कर दें कि भाई ! आपलोग कृष्णको ही गुरु मानो तो यह वहम ही मिट जाय ........!
स्वामीजी‒ वास्तवमें गुरुको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । फल पककर तैयार होता है तो तोता खुद उसको ढूँढ़ लेता है । ऐसे ही अच्छे गुरु खुद चेलेको ढूँढ़ते हैं, चेलेको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । जैसे ही आप कल्याणके लिये तैयार हुए, गुरु फट आ टपकेगा ! फल पककर तैयार होता है तो तोता अपने-आप उसके पास आता है, फल तोतेको नहीं बुलाता । ऐसे ही आप तैयार हो जाओ कि अब मुझे अपना कल्याण करना है तो गुरु अपने-आप आयेगा ।
‒गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे
गुरु को ढूँढ़ना नहीं पड़ता
श्रोता‒ आजकल दुनियामें ढूँढ़नेपर भी गुरु नहीं मिलता । मिलता है तो ठग मिलता है । हम गुरु ढूँढ़नेके लिये कई तीर्थोंमें गये, पर कोई मिला ही नहीं । आप कहते हैं कि जगद्गुरु कृष्णको अपना गुरु मान लो । अगर आप यह घोषणा कर दें कि भाई ! आपलोग कृष्णको ही गुरु मानो तो यह वहम ही मिट जाय ........!
स्वामीजी‒ वास्तवमें गुरुको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । फल पककर तैयार होता है तो तोता खुद उसको ढूँढ़ लेता है । ऐसे ही अच्छे गुरु खुद चेलेको ढूँढ़ते हैं, चेलेको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । जैसे ही आप कल्याणके लिये तैयार हुए, गुरु फट आ टपकेगा ! फल पककर तैयार होता है तो तोता अपने-आप उसके पास आता है, फल तोतेको नहीं बुलाता । ऐसे ही आप तैयार हो जाओ कि अब मुझे अपना कल्याण करना है तो गुरु अपने-आप आयेगा ।
‒गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे
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