गुरुवार, 21 मार्च 2019

दीवानों की दुनियाँ (पोस्ट 04)

❈ श्री हरिः शरणम् ❈

दीवानों की दुनियाँ (पोस्ट 04)


सांसारिक लोग धन, मान, ऐश्वर्य, प्रभुता, बल, कीर्ति आदिकी प्राप्तिके लिये परमात्माकी कुछ भी परवा न कर अपना सारा जीवन इन्हीं पदार्थोंके प्राप्त करने में लगा देते हैं और इसीको परम पुरुषार्थ मानते हैं। इसके विपरीत परमात्माकी प्राप्तिके अभिलाषी पुरुष परमात्माके लिये इन सारी लोभनीय वस्तुओंका तृणवत्‌, नहीं, नहीं, विषवत्‌ परित्याग कर देते हैं और उसीमेंउनको बड़ा आनन्द मिलता है। पहलेको मान प्राण समान प्रिय है तो दूसरा मान-प्रतिष्ठाको शूकरी-विष्ठा समझता है। पहला धनको-जीवनका आधार समझता है तो दूसरा लौकिक धनको परमधनकी प्राप्तिमें प्रतिबन्धक मानकर उसका त्याग कर देता है। पहला प्रभुता प्राप्तकर जगत्‌पर शासन करना चाहता है तो दूसरा ‘तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना’ बनकर महापुरुषोंके चरणकी रजका अभिषेक करनेमें ही अपना मंगल मानता है। दोनोंके भिन्न भिन्न ध्येय और मार्ग हैं। ऐसी स्थितिमें एक दूसरेको पथभ्रान्त समझना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। यह तो विषयी और मुमुक्षुका अन्तर है। परन्तु इससे पहले किये हुए विवेचनके अनुसार मुक्त अथवा भगवदीय लीलामें सम्मिलित भक्तके लिये तो जगत्‌का स्वरूप ही बदल जाता है। इसीसे वह इस खेलसे मोहित नहीं होता। जब छोटे लड़के काँचके या मिट्टीके खिलौनोंसे खेलते और उनके लेन-देन ब्याह-शादीमें लगे रहते हैं, तब बड़े लोग उनके खेलको देखकर हँसा करते हैं, परन्तु छोटे बच्चोंकी दृष्टिमें वह बड़ोंकी भांति कल्पित वस्तुओंका खेल नहीं होता। वे उसे सत्य समझते हैं और जरा-जरासी वस्तुके लिये लड़ते हैं, किसी खिलौनेके टूट जाने या छिन जानेपर रोते हैं, वास्तवमें उनके मनमें बड़ा कष्ट होता है। नया खिलौना मिल जानेपर वे बहुत हर्षित होते हैं। जब माता-पिता किसी ऐसे बच्चेको, जिसके मिट्टीके खिलौने टूट गये हैं या छिन गये हैं, रोते देखते हैं तो उसे प्रसन्न करनेके लिये कुछ खिलौने और दे देते हैं, जिससे वह बच्चा चुप हो जाता है और अपने मनमें बहुत हर्षित होता है परन्तु सच्चे हितैषी माता-पिता बालको केवल खिलौना देकर ही हर्षित नहीं करना चाहते, क्योंकि इससे तो इस खिलौनेके टूटनेपर भी उन्हें फिर रोना पड़ेगा। अतएव वे समझाकर उनका यह भ्रम भी दूर कर देना चाहते हैं कि खिलौने वास्तवमें सच्ची वस्तु नहीं है। मिट्टीकी मामूली चीज हैं, उनके जाने-आने या बनने-बिगड़नेमें कोई विशेष लाभ-हानि नहीं है। इसी प्रकारकी दशा संसारके मनुष्यों की हो रही है।

शेष आगामी पोस्ट में ...................

...............००४. ०५. मार्गशीर्ष कृष्ण ११ सं०१९८६वि०. कल्याण ( पृ० ७५९ )


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