शुक्रवार, 22 मार्च 2019

दीवानों की दुनियाँ (पोस्ट 05)

❈ श्री हरिः शरणम् ❈

दीवानों की दुनियाँ (पोस्ट 05)


संसारके लोग जिन सब वस्तुओं के नाश हो जानेपर रोते और पुनः मिलने की आकांक्षा करते हैं या जिनकी अप्राप्ति में अभावका अनुभव कर दुखी होते हैं और प्राप्त होने पर हर्षसे फूल जाते हैं, तत्त्वदर्शीं पुरुष इस तरह नहीं करते, वे इस रहस्यको समझते हैं, इसलिये वे समय समयपर बच्चोंके साथ बच्चे बनकर खेलते हैं, बच्चोंके खेलमें शामिल हो जाते हैं, परन्तु होते हैं उन बच्चोंको खेलका असली तत्त्व समझाकर सदाको शोक-मुक्त कर देनेके लिये ही !

ऐसे भगवान्‌के प्यारे भक्त विश्वकी प्रत्येक क्रियामें परमात्माकी लीलाका अनुभव करते हैं, वे सभी अनुकूल और प्रतिकूल घटनाओंमें परमात्माको ओतप्रोत समझकर , लीलारूपमें उनको अवतरित समझकर, उनके नित्य नये नये खेलोंको देखकर प्रसन्न होते हैं और सब समय सब तरहसे और सब ओरसे सन्तुष्ट रहते हैं। ऐसे लोगोंको जगत्‌के लोग-जिनका मन भोगोंमें, उन्हें सुखरूप समझकर फँसा हुआ है, स्वार्थी, अकर्मण्य, आलसी, पागल, दीवाने और भ्रान्त समझते हैं, परन्तु वे क्या होते हैं, इस बातका पता वास्तवमें उन्हींको रहता है। ऐसे दीवानोंकी दुनियाँ दूसरी ही होती है, उस दुनियाँमें कभी राग-द्वेष, रोग-शोक, सुख-दुःख नहीं होते। वह दुनियाँ सूर्य चन्द्रसे प्रकाशित नहीं होती, स्वतः प्रकाशित रहती है। इतना ही नहीं, उसी दुनिया के परम प्रकाश से ही सारे विश्व को प्रकाश मिलता है।

!! ॐ तत्सत् !!

...............००४. ०५. मार्गशीर्ष कृष्ण ११ सं०१९८६वि०. कल्याण ( पृ० ७५९ )


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