☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ प्राधानिकं रहस्यम् (पोस्ट ०४)
अथ प्राधानिकं रहस्यम् (पोस्ट ०४)
इत्युक्त्वा ते महालक्ष्मी: ससर्ज मिथुनं स्वयम्।
हिरण्यगभरै
रुचिरौ स्त्रीपुंसौ कमलासनौ॥18॥
ब्रह्मन्
विधे विरिञ्चेति धातरित्याह तं नरम्।
श्री:
पद्मे कमले लक्ष्मीत्याह माता च तां स्त्रियम्॥19॥
महाकाली
भारती च मिथुने सृजत: सह।
एतयोरपि
रूपाणि नामानि च वदामि ते॥20॥
नीलकण्ठं
रक्त बाहुं श्वेताङ्गं चन्द्रशेखरम्।
जनयामास
पुरुषं महाकाली सितां स्त्रियम्॥21॥
स
रुद्र: शंकर: स्थाणु: कपर्दी च त्रिलोचन:।
त्रयी
विद्या कामधेनु: सा स्त्री भाषाक्षरा स्वरा॥22॥
सरस्वती
स्त्रियं गौरीं कृष्णं च पुरुषं नृप।
नयामास
नामानि तयोरपि वदामि ते॥23॥
उन दोनों से यों कहकर महालक्ष्मी ने पहले स्वयं ही स्त्री-पुरुष का एक जोडा उत्पन्न किया। वे दानों हिरण्यगर्भ (निर्मल ज्ञान से सम्पन्न) सुन्दर तथा कमल के आसन पर विराजमान थे। उनमें से एक स्त्री थी और दूसरा पुरुष॥18॥ तत्पश्चात् माता महालक्ष्मी ने पुरुष को ब्रह्मन्! विधे! विरिञ्च! तथा धात:! इस प्रकार सम्बोधित किया और स्त्री को श्री! पद्मा! कमला! लक्ष्मी! इत्यादि नामों से पुकारा॥19॥ इसके बाद महाकाली और महासरस्वती ने भी एक-एक जोडा उत्पन्न किया। इनके भी रूप और नाम मैं तुम्हें बतलाता हूँ॥20॥ महाकाली ने कण्ठ में नील चिह्न से युक्त , लाल भुजा, श्वेत शरीर और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करने वाले पुरुष को तथा गोरे रंग की स्त्री को जन्म दिया॥21॥ वह पुरुष रुद्र, शंकर, स्थाणु, कपर्दी और त्रिलोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा स्त्री के त्रयी, विद्या, कामधेनु, भाषा, अक्षरा और स्वरा- ये नाम हुए॥22॥
राजन्! महासरस्वती ने गोरे रंग की स्त्री और श्याम रंग के पुरुष को प्रकट किया। उन दोनों के नाम भी मैं तुम्हें बतलाता हूँ॥23॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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