☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ वैकृतिकं रहस्यम् (पोस्ट ०४)
अथ वैकृतिकं रहस्यम् (पोस्ट ०४)
महालक्ष्मीर्यदा
पूज्या महाकाली सरस्वती।
दक्षिणोत्तरयो:
पूज्ये पृष्ठतो मिथुनत्रयम्॥18॥
विरञ्चि:
स्वरया मध्ये रुद्रो गौर्या च दक्षिणे।
वामे
लक्ष्म्या हृषीकेश: पुरतो देवतात्रयम्॥19॥
अष्टादशभुजा
मध्ये वामे चास्या दशानना।
दक्षिणेऽष्टभुजा
लक्ष्मीर्महतीति समर्चयेत्॥20॥
अष्टादशभुजा
चैषा यदा पूज्या नराधिप।
दशानना
चाष्टभुजा दक्षिणोत्तरयोस्तदा॥21॥
कालमृत्यू
च सम्पूज्यौ सर्वारिष्टप्रशान्तये।
यदा
चाष्टभुजा पूज्या शुम्भासुरनिबर्हिणी॥22॥
नवास्या:
शक्त य: पूज्यास्तदा रुद्रविनायकौ।
नमो
देव्या इति स्तोत्रैर्महालक्ष्मीं समर्चयेत्॥23॥
अवतारत्रयार्चायां
स्तोत्रमन्त्रास्तदाश्रया:।
अष्टादशभुजा
सैव पूज्या महिषमर्दिनी॥24॥
महालक्ष्मीर्महाकाली
सैव प्रोक्ता सरस्वती।
ईश्वरी
पुण्यपापानां सर्वलोकमहेश्वरी॥25॥
महिषान्तकरी
येन पूजिता स जगत्प्रभु:।
पूजयेज्जगतां
धात्रीं चण्डिकां भक्त वत्सलाम्॥26॥
जब
महालक्ष्मी की पूजा करनी हो, तब उन्हें मध्य में स्थापित
करके उनके दक्षिण और वाम भाग में क्रमश: महाकाली और महासरस्वती का पूजन करना
चाहिये और पृष्ठ भाग में तीनों युगल देवताओं की पूजा करनी चाहिये॥18॥ महालक्ष्मी के ठीक पीछे मध्य भाग में सरस्वती
के साथ ब्रह्मा का पूजन करे। उनके दक्षिण भाग में गौरी के साथ रुद्र की पूजा करे
तथा वामभाग में लक्ष्मी सहित विष्णु का पूजन करे। महालक्ष्मी आदि तीनों देवियों के
सामने निम्नाङ्कित तीन देवियों की भी पूजा करनी चाहिये॥19॥ मध्यस्थ
महालक्ष्मी के आगे मध्यभाग में अठारह भुजाओं वाली महालक्ष्मी का पूजन करे। उनके
वामभाग में दस मुखों वाली महाकाली का तथा दक्षिणभाग में आठ भुजाओं वाली महासरस्वती
का पूजन करे॥20॥
राजन्!
जब केवल अठारह भुजाओं वाली महालक्ष्मी का अथवा दशमुखी काली का अष्टभुजा सरस्वती का
पूजन करना हो,
तब सब अरिष्टों की शान्ति के लिये इनके दक्षिणभाग में काल की और
वामभाग में मृत्यु की भी भलीभाँति पूजा करनी चाहिये। जब शुम्भासुर का संहार करने
वाली अष्टभुजा देवी की पूजा करनी हो, तब उनके साथ उनकी नौ शक्तियों
का और दक्षिण भाग में रुद्र एवं वामभाग में गणेशजी का भी पूजन करना चाहिये
(ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही,
ऐन्द्री, शिवदूती तथा चामुण्डा-ये नौ शक्ति
याँ हैं)। नमो देव्यै...... इस स्तोत्र से महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये॥21-23॥ तथा उनके तीन अवतारों की पूजा के समय उनके चरित्रों में जो स्तोत्र और
मन्त्र आये हैं, उन्हीं का उपयोग करना चाहिये। अठारह भुजाओं
वाली महिषासुरमर्दिनी महालक्ष्मी ही विशेषरूप से पूजनीय हैं; क्योंकि वे ही महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती
कहलाती हैं। वे ही पुण्य पापों की अधीश्वरी तथा सम्पूर्ण लोकों की महेश्वरी हैं॥24-25॥ जिसने महिषासुर का अन्त करने वाली महालक्ष्मी
की भक्ति पूर्वक आराधना की है, वही संसार का स्वामी है। अत:
जगत् को धारण करने वाली भक्त वत्सला भगवती चण्डिका की अवश्य पूजा करनी चाहिये॥26॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
जय जगदम्बे
जवाब देंहटाएंश्रीमान से निवेदन है कि दुर्गासप्तशती प्रथम पोस्ट का लिंक प्रदान करने का कष्ट करने की कृपा करें,
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