☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ मूर्तिरहस्यम् (पोस्ट ०४)
अथ मूर्तिरहस्यम् (पोस्ट ०४)
भीमापि
नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा।
विशाललोचना
नारी वृत्तपीनपयोधरा॥18॥
चन्द्रहासं
च डमरुं शिर: पात्रं च बिभ्रती।
एकावीरा
कालरात्रि: सैवोक्ता कामदा स्तुता॥19॥
तजोमण्डलुदुर्धर्षा
भ्रामरी चित्रकान्तिभृत्।
चित्रानुलेपना
देवी चित्राभरणभूषिता॥20॥
चित्रभ्रमरपाणि:
सा महामारीति गीयते।
इत्येता
मूर्तयो देव्या या: ख्याता वसुधाधिप॥21॥
भीमादेवी
का वर्ण भी नील ही है। उनकी दाढें और दाँत चमकते रहते हैं। उनके नेत्र बडे-बडे हैं, स्वरूप स्त्री का है, स्तन गोल-गोल और स्थूल हैं। वे
अपने हाथों में चन्द्रहास नामक खड्ग, डमरू, मस्तक और पानपात्र धारण करती हैं। वे ही एकवीरा, कालरात्रि
तथा कामदा कहलाती और इन नामों से प्रशंसित होती हैं॥18-19॥ भ्रामरी
देवी की कान्ति विचित्र (अनेक रंग की) है। वे अपने तेजोमण्डल के कारण दुर्धर्ष
दिखायी देती हैं। उनका अङ्गराग भी अनेक रंग का है तथा वे चित्र-विचित्र आभूषणों से
विभूषित हैं॥20॥ चित्रभ्रमरपाणि
और महामारी आदि नामों से उनकी महिमा का गान किया जाता है। राजन्! इस प्रकार
जगन्माता चण्डिका देवी की ये मूर्तियाँ बतलायी गयी हैं॥21॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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