☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ मूर्तिरहस्यम् (पोस्ट ०५)
अथ मूर्तिरहस्यम् (पोस्ट ०५)
जगन्मातुश्चण्डिकाया:
कीर्तिता: कामधेनव:।
इदं
रहस्यं परमं न वाच्यं कस्यचित्त्वया॥22॥
व्याख्यानं
दिव्यमूर्तीनामभीष्टफलदायकम्।
तस्मात्
सर्वप्रयत्नेन देवीं जप निरन्तरम्॥23॥
सप्तजन्मार्जितैर्घोरैर्ब्रह्महत्यासमैरपि।
पाठमात्रेण
मन्त्राणां मुच्यते सर्वकिल्बिषै:॥24॥
देव्या
ध्यानं मया ख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं महत्।
तस्मात्
सर्वप्रयत्नेन सर्वकामफलप्रदम्॥25॥
(एतस्यास्त्वं प्रसादेन सर्वमान्यो भविष्यसि।
सर्वरूपमयी
देवी सर्व देवीमयं जगत्।
अतोऽहं
विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम्।)
जो
कीर्तन करने पर कामधेनु के समान सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करती हैं। यह परम
गोपनीय रहस्य है। इसे तुम्हें दूसरे किसी को नहीं बतलाना चाहिए॥22॥ दिव्य मूर्तियों का यह आख्यान मनोवाञ्छित फल
देने वाला है, इसलिये पूर्ण प्रयत्न करके तुम निरन्तर देवी
के जप (आराधन) में लगे रहो॥23॥ सप्तशती
के मन्त्रों के पाठमात्र से मनुष्य सात जन्मों में उपार्जित ब्रह्महत्यासदृश घोर
पातकों एवं समस्त कल्मषों से मुक्त हो जाता है॥ 24॥इसलिये
मैंने पूर्ण प्रयत्न करके देवी के गोपनीय से भी अत्यन्त गोपनीय ध्यान का वर्णन
किया है, जो सब प्रकार के मनोवाञ्छित फलों को देने वाला है॥25॥
(उनके प्रसाद से तुम सर्वमान्य हो जाओगे। देवी सर्वरूपमयी हैं तथा सम्पूर्ण
जगत् देवीमय है। अत: मैं उन विश्वरूपा परमेश्वरी को नमस्कार करता हूँ।)
इति
मूर्तिरहस्य सम्पूर्णम्*
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तदनन्तर प्रारम्भ में बतलायी हुई रीति से शापोद्धार करनेके पश्चात् देवी से
अपने अपराधों के लिये क्षमा-प्रार्थना करे।
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
जय जगदम्बे
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