नाम-सङ्कीर्तन
आदि में वर्ण-आश्रम का भी नियम नहीं है—
ब्राह्मणा:
क्षत्रिया वैश्या: स्त्रिय: शूद्रान्त्यजातय:।
यत्र
तत्रानुकुर्वन्ति विष्णोर्नामानुकीर्तनम्। सर्वपापविनिर्मुक्तास्तेऽपि यान्ति
सनातनम् ।।
‘ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,
स्त्री, शूद्र, अन्त्यज
आदि जहाँ-तहाँ विष्णुभगवान् के नाम का अनुकीर्तन करते रहते हैं, वे भी समस्त पापोंसे मुक्त होकर सनातन परमात्माको प्राप्त होते हैं।’
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श्रीमद्भागवतमहापुराण ६/०२
जय श्रीहरि
जवाब देंहटाएंHari om
जवाब देंहटाएंश्री विष्णवे नमः
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