☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
क्षमा-प्रार्थना (पोस्ट 01)
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी ।।1||
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी ।।2||
मंत्रहींनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी ।।1||
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी ।।2||
मंत्रहींनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ।।3||
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रम्हादयः सुराः ।।4||
परमेश्वरि! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्रों अपराध होते रहते
हैं। “यह मेरा दास है'–यों समझकर मेरे उन अपराधोंको तुम कृपापूर्वक क्षमा करो ॥१॥ परमेश्वरि! मैं
आवाहन नहीं जानता (जानती ) विसर्जन करना नहीं जानता (जानती ) तथा पूजा करनेका ढंग
भी नहीं जानता (जानती )। क्षमा करो॥२॥ देवि! सुरेश्वरि! मैंने जो मन्त्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपासे पूर्ण हो॥ ३॥ सैकड़ों अपराध करके भी जो
तुम्हारी शरणमें जा ‘जगदम्ब' कहकर पुकारता
है,
उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रह्मादि देवताओंके लिये भी सुलभ नहीं है॥४॥
शेष आगामी
पोस्ट में ----
.....गीताप्रेस,गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित पुस्तक श्रीदुर्गासप्तशती (पुस्तक कोड १२८१) से
जय माँ दुर्गे
जवाब देंहटाएंRadhe Radhe giriraj maharaj ki jai ho
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