☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
क्षमा-प्रार्थना (पोस्ट 02)
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।।5||
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।।5||
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी ।।6||
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी ।।6||
कामेश्वरी जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।।7||
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरी ||8||
जगदम्बिके! मैं अपराधी हूँ, किंतु तुम्हारी शरणमें आया हूँ । इस समय दयाका पात्र हूँ। तुम जैसा चाहो, करो॥५॥ देवि! परमेश्वरि! अज्ञानसे, भूलसे अथवा बुद्धि भ्रान्त होने के कारण मैंने जो न्यूनता
या अधिकता कर दी हो,
वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होओ॥६॥
सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरि! जगन्माता कामेश्वरि! तुम
प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझपर प्रसन्न रहो॥७॥ देवि! सुरेश्वरि!
तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तुकी रक्षा करने वाली हो । मेरे निवेदन किये हुए इस जप को ग्रहण करो ।
तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि
प्राप्त हो॥८॥
श्री
दुर्गार्पणमस्तु |
.....गीताप्रेस,गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित पुस्तक श्रीदुर्गासप्तशती (पुस्तक कोड १२८१) से
अति सुंदर व परोपकारी लेखन, आधुनिक विचारों के समानांतर चलने का आध्यात्मिक प्रयास , अत्यंत सराहनीय सोच को एक सहज सहयोग ।
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