☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ०३)
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ०३)
पश्चाद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम् ।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे ॥
३॥
देवि!
इसके पश्चात् यह विशुद्ध आँवले का फल
ग्रहण करो। शिवप्रिये! त्रिपुरसुन्दरि! इस आँवलेमें प्रायः जितने भी सुगन्धित
पदार्थ हैं,
वे सभी डाले। गये हैं। इससे यह परम सुगन्धित हो गया है। अतः इसको
लगाकर बालों को कंघी से झाड़ लो और गङ्गा जी की पवित्र धारा में नहाओ । तदनन्तर यह
दिव्य गन्ध सेवा में प्रस्तुत है, यह तुम्हारे आनन्द की
वृद्धि करनेवाला हो ॥ ३॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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