☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ वैकृतिकं रहस्यम् (पोस्ट ०१)
अथ वैकृतिकं रहस्यम् (पोस्ट ०१)
ॐ
त्रिगुणा तामसी देवी सात्त्विकी या त्रिधोदिता।
सा
शर्वा चण्डिका दुर्गा भद्रा भगवतीर्यते॥1॥
योगनिद्रा
हरेरुक्ता महाकाली तमोगुणा।
मधुकैटभनाशार्थ
यां तुष्टावाम्बुजासन:॥2॥
दशवक्त्रा
दशभुजा दशपादाञ्जनप्रभा।
विशालया
राजमाना त्रिंशल्लोचनमालया॥3॥
स्फुरद्दशनदंष्ट्रा
सा भीमरूपापि भूमिप।
रूपसौभाग्यकान्तीनां
सा प्रतिष्ठा महाश्रिय:॥4॥
खड्गबाणगदाशूलचक्रशङ्खभुशुण्डिभृत्।
परिघं
कार्मुकं शीर्ष निश्च्योतद्रुधिरं दधौ॥5॥
ऋषि
कहते हैं- राजन्! पहले जिन सत्त्वप्रधाना त्रिगुणामयी महालक्ष्मी के तामसी आदि
भेद से तीन स्वरूप बतलाये गये, वे ही शर्वा, चण्डिका, दुर्गा, भद्रा और
भगवती आदि अनेक नामों से कही जाती हैं॥1॥ तमोगुणमयी महाकाली भगवान् विष्णु की योगनिद्रा कही गयी हैं। मधु और कैटभ
का नाश करने के लिये ब्रह्माजी ने जिनकी स्तुति की थी, उन्हीं
का नाम महाकाली है॥2॥
उनके दस मुख, दस भुजाएँ और दस पैर हैं। वे काजल के
समान काले रंग की हैं अथा तीस नेत्रों की विशाल पंक्ति से सुशोभित होती हैं॥3॥ भूपाल! उनके दाँत और दाढें चमकती रहती हैं।
यद्यपि उनका रूप भयंकर है, तथापि वे रूप, सौभाग्य, कान्ति एवं महती सम्पदा की अधिष्ठान
(प्राप्तिस्थान) हैं॥4॥ वे अपने
हाथों में खड्ग, बाण, गदा, शूल, चक्र, शङ्ख, भुशुण्डि, परिघ, धनुष तथा
जिससे रक्त चूता रहता है, ऐसा कटा हुआ मस्तक धारण करती हैं॥5॥
इन
अवतारोंका क्रम इस प्रकार है--
चतुर्भुजा
महालक्ष्मी (मूल प्रकृति)
चतुर्भुजा
महाकाली
चतुर्भुजा
महासरस्वती
शङ्कर-सरस्वती
विष्णु
और गौरी
ब्रह्मा
और लक्ष्मी
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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