☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १४)
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १४)
लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम् ।
सुधामधुरमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम् ॥ १४॥
माँ!
सुन्दर रत्नमय पात्र में सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल अपने मुख में ग्रहण करो । लवंग की कली चुभोकर
इसके बीड़े लगाये गये हैं,
अतः बहुत सुन्दर जान पड़ते हैं, इसमें बहुत-से
पान के पत्तों का उपयोग किया गया है। इन सब बीड़ों में कोमल जावित्री, कपूर और सोपारी पड़े हैं। यह ताम्बूल सुधा के माधुर्य से परिपूर्ण है॥१४॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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