ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय
दूध
में घी रहता ही है,
किन्तु उस समय उसका अलग स्वाद नहीं मिलता; वही
जब उससे अलग हो जाता है, तब देवताओंके लिये भी स्वादवर्धक हो
जाता है ॥ खाँड ईख के ओर-छोर और बीच में भी व्याप्त रहती है, तथापि अलग होनेपर उसकी कुछ और ही मिठास होती है। ऐसी ही यह भागवतकी कथा है
॥
“यथा
दुग्धे स्थितं सर्पिः न स्वादायोपकल्पते ।
पृथग्भूतं
हि तद्गव्यं देवानां रसवर्धनम् ॥
इक्षूणामपि
मध्यान्तं शर्करा व्याप्य तिष्ठति ।
पृथग्भूता
च सा मिष्टा तथा भागवती कथा ॥“
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श्रीमद्भागवतमाहात्म्य २|६९-७०
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