गुरुवार, 16 मई 2019

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय





ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

दूध में घी रहता ही है, किन्तु उस समय उसका अलग स्वाद नहीं मिलता; वही जब उससे अलग हो जाता है, तब देवताओंके लिये भी स्वादवर्धक हो जाता है ॥ खाँड ईख के ओर-छोर और बीच में भी व्याप्त रहती है, तथापि अलग होनेपर उसकी कुछ और ही मिठास होती है। ऐसी ही यह भागवतकी कथा है ॥

“यथा दुग्धे स्थितं सर्पिः न स्वादायोपकल्पते ।
पृथग्भूतं हि तद्‌गव्यं देवानां रसवर्धनम् ॥
इक्षूणामपि मध्यान्तं शर्करा व्याप्य तिष्ठति ।
पृथग्भूता च सा मिष्टा तथा भागवती कथा ॥“

........ श्रीमद्भागवतमाहात्म्य २|६९-७०




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