: श्रीहरि :
भगवान्की आवश्यकता का अनुभव करना
(पोस्ट २)
आपमें केवल भगवत्प्राप्तिकी लालसा
हो जाय । वह लालसा ऐसी हो,जिसकी कभी
विस्मृति न हो । तात्पर्य है कि मुझे भगवान्की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, उनके चरणोंमें मेरा प्रेम हो
जाय‒इसको केवल याद रखना है, भूलना नहीं
है । हम सब भगवान्रूपी कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं, इसलिये
हमारी लालसा अवश्य पूरी होगी; क्योंकि इसीके लिये मनुष्यजन्म
मिला है । अगर आपकी सच्ची लगन होगी तो दो-चार दिनमें काम सिद्ध हो जायगा । कितनी
सुगम बात है ! इसमें कठिनता क्या है ? इसमें लाभ-ही-लाभ है,
हानि कोई है ही नहीं । इससे बढ़िया, सुगम उपाय
मुझे कहीं मिला नहीं !
केवल एक बात पकड़ लें कि मेरा भगवान्में
प्रेम हो जाय । इस एक बातमें सब कुछ आ जायगा । इसमें पुरुषार्थ इतना ही है कि इस
बातको भूलें नहीं, केवल याद रखें ।
ऐसा करोगे तो मैं अपनेपर आपकी बड़ी कृपा मानूँगा, एहसान
मानूँगा ! केवल याद रखना है, इतनी ही बात है । ऊँची-से-ऊँची
सिद्धि इससे हो जायगी । सदाके लिये दुःख मिट जायगा । कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोग‒ये तीनों योग सिद्ध हो जायँगे
। केवल अपनी आवश्यकताको याद रखें, भूलें नहीं । इसके सिद्ध
होनेमें कम या ज्यादा दिन लग सकते हैं, पर इसमें कोई अयोग्य
नहीं है । यह बात मामूली नहीं है ।
शेष आगामी पोस्ट में.......
‒गीताप्रेस गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित ‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तक से
Jai Shri Hari
जवाब देंहटाएं🚩🚩🚩🕉️ श्री मन्नारायणाय नारायण हरि हरि 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
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