शुक्रवार, 28 जून 2019

भगवान्‌ की आवश्यकता का अनुभव करना (पोस्ट २)



: श्रीहरि :

भगवान्‌की आवश्यकता का अनुभव करना
(पोस्ट २)

आपमें केवल भगवत्प्राप्तिकी लालसा हो जाय । वह लालसा ऐसी हो,जिसकी कभी विस्मृति न हो । तात्पर्य है कि मुझे भगवान्‌की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, उनके चरणोंमें मेरा प्रेम हो जायइसको केवल याद रखना है, भूलना नहीं है । हम सब भगवान्‌रूपी कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं, इसलिये हमारी लालसा अवश्य पूरी होगी; क्योंकि इसीके लिये मनुष्यजन्म मिला है । अगर आपकी सच्ची लगन होगी तो दो-चार दिनमें काम सिद्ध हो जायगा । कितनी सुगम बात है ! इसमें कठिनता क्या है ? इसमें लाभ-ही-लाभ है, हानि कोई है ही नहीं । इससे बढ़िया, सुगम उपाय मुझे कहीं मिला नहीं !

केवल एक बात पकड़ लें कि मेरा भगवान्‌में प्रेम हो जाय । इस एक बातमें सब कुछ आ जायगा । इसमें पुरुषार्थ इतना ही है कि इस बातको भूलें नहीं, केवल याद रखें । ऐसा करोगे तो मैं अपनेपर आपकी बड़ी कृपा मानूँगा, एहसान मानूँगा ! केवल याद रखना है, इतनी ही बात है । ऊँची-से-ऊँची सिद्धि इससे हो जायगी । सदाके लिये दुःख मिट जायगा । कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोगये तीनों योग सिद्ध हो जायँगे । केवल अपनी आवश्यकताको याद रखें, भूलें नहीं । इसके सिद्ध होनेमें कम या ज्यादा दिन लग सकते हैं, पर इसमें कोई अयोग्य नहीं है । यह बात मामूली नहीं है ।

शेष आगामी पोस्ट में.......
गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित लक्ष्य अब दूर नहीं !पुस्तक से



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