☼ श्रीहरि: ☼
अपना कल्याण न गुरुके अधीन है,
न सन्तोंके अधीन है और न ईश्वरके अधीन है, यह
तो स्वयंके अधीन है‒‘उद्धरेदात्मनात्मानम्’ (गीता ६ । ५) ‘अपने द्वारा अपना उद्धार करे’ । आप नहीं करोगे तो कल्याण नहीं होगा, नहीं होगा ।
लाखों गुरु बना लो तो भी कल्याण नहीं होगा । जब भूख भी खुद रोटी खानेसे ही मिटती
है, फिर कल्याण दूसरा कैसे करेगा ? आपकी
लगनके बिना भगवान् भी आपका कल्याण नहीं कर सकते, फिर गुरु कर
देगा, महात्मा कर देगा‒इस ठगाईमें,
इस चक्करमें मत आना । इसमें धोखा है, धोखा है
! पहले ही फँसे हुए हो,गुरु मिल जाय तो और फँस जाओगे ! जब
परमात्माके रहते हुए हमारा कल्याण नहीं हुआ तो क्या उनसे भी तेज महात्मा आ जायगा !
दयालु, सर्वज्ञ और सर्वसमर्थ प्रभुके रहते हुए हमारा कल्याण
नहीं हुआ, फिर गुरुसे कैसे होगा ? क्या
भगवान् मर गये या बीमार हो गये या उनकी शक्ति कम हो गयी ? आपको
खुदको ही लगना पड़ेगा । आप खुद लग जाओ तो गुरु, सन्त-महात्मा,
भगवान् आदि सब-के-सब आपके सहायक हो जायँगे । बच्चेको भूख न हो तो
दयालु माँ भी क्या करेगी? आपकी लगनके बिना कौन कल्याण करेगा
और कैसे करेगा ?
अनन्त युग बीत गये,
फिर भी हमारा कल्याण क्यों नहीं हुआ ? क्या
भगवान्की दयालुतामें, सर्वज्ञतामें, सर्वसमर्थतामें
कोई कमी है ? क्या गुरु भगवान्से ज्यादा दयालु, सर्वज्ञ और सर्वसमर्थ है ? जैसे अपना पतन आप खुद कर
रहे हो, दूसरा नहीं, ऐसे ही अपना
उत्थान भी आपको खुद ही करना पड़ेगा,अन्यथा परमात्माके रहते
हुए आप दुःख क्यों पा रहे हो ? आपके तैयार हुए बिना कोई
कल्याण नहीं कर सकता और आप तैयार हो जाओ तो कोई बाधा नहीं दे सकता ।
‒---गीताप्रेस
गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’
से
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