श्रीराम जय राम जय जय राम !
श्रीराम जय राम जय जय राम !!
दस सिर ताहि बीस भुजदण्डा (पोस्ट 02)
पुष्पोत्कटा के दो पुत्र हुए –रावण और कुम्भकर्ण | मालिनी से एक पुत्र विभीषण हुआ | राका के गर्भ से खर और शूर्पणखा हुए | यथा—
‘पुष्पोत्कटायां जज्ञाते द्वौ पुत्रौ राक्षसेश्वरौ |
कुम्भकर्ण दशग्रीवौ बलेनाऽप्रतिमौ भुवि ||
मालिनी जनयामास पुत्रमेकं विभीषण् |
राकायां मिथुनं जज्ञे खर:शूर्पणखा तथा ||’
.................(महाभारत वनपर्व अध्याय २७५|७-८)
रावण के दस सिर जन्मजात थे | इसी से उसका नाम प्रथम दशग्रीव था | रावण नाम तो कैलास के नीचे दबने पर हुआ | रावण का अर्थ है रुलाने वाला ..(वाल्मी० ७|१६ देखिये)
वाल्मीकीय के रावणजन्म की कथा तथा उसकी माता का नाम इससे भिन्न है | कथा इस प्रकार है कि विष्णु भगवान् के भय से सुमाली परिवारसहित रसातल में रहने लगा | एकबार जब वह अपनी कुमारी कन्या कैकसी सहित मर्त्यलोक में विचर रहा था, उसी समय कुबेरजी पिता विश्रवा के दर्शनों को जा रहे थे | उनका देवताओं और अग्नि के समान तेज देखकर वह रसातल को लौट आया और राक्षसों की वृद्धि का उपाय सोचकर उसने अपनी कन्या कैकसी से कहा कि तू पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा मुनि को स्वयं जाकर वर | इससे कुबेर के समान तेजस्वी पुत्र तुझे प्राप्त होंगे | पिता की आज्ञा मान कैकसी बिश्रवा मुनि के पास गयी | सायंकाल का समय था | वे अग्निहोत्र कर रहे थे | दारुण प्रदोष काल का उसने विचार न कर वहां जाकर उनके समीप खड़ी हो गयी | उसे देखकर उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो और क्यों आई हो ? उसने उत्तर दिया कि आप तप: प्रभाव से मेरे मन की बात जान सकते हैं | मैं केवल इतना बताये देती हूँ कि मैं केवल अपने पिता की आज्ञा से आयी हूँ और मेरा नाम कैकसी है |
विश्रवा मुनि ध्यान द्वारा सब जानकर उससे कहा की तू दारुण समय में आयी है, इससे तेरे पुत्र बड़े क्रूर कर्म करने वाले और भयंकर आकृति के होंगे | यह सुनकर उसने प्रार्थना की कि आप—ऐसे ब्रह्मवादी से मुझे ऐसे पुत्र न होने चाहिए | आप मुझपर कृपा करें | मुनि ने कहा—‘अच्छा, तेरा पिछ्ला पुत्र वंशानुकूल धर्मात्मा होगा |’
कैकसी के गर्भ से क्रमश: रावण, कुम्भकर्ण, शूर्पणखा उत्पन्न हुए | सबसे पीछे विभीषण हुए |...(वाल्मी०७|९|१-३५)
प्राय: यही कथा अध्यात्मरामायण में है |...(अ०रा० ७|१|४५-५९) | पद्मपुराण-पातालखण्ड में श्री अगस्त्यजी ने श्रीराम दरबार में जो कथा कही है उसमें की ‘कैकसी’ विद्युन्माली दैत्य की कन्या थी | उस कैकसी के ही रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण पुत्र हुए |
यों भी कहा जाता है की रूद्रयामलतंत्र और पद्मपुराण में लिखा है कि कैकसी को रतिदान की स्वीकृति दे मुनि ध्यान में लीन होगये | ध्यान छूटने पर पूछा—उसने कहा कि दस बार मुझे रतिधर्म हुआ है , इससे आशीर्वाद दिया की प्रथम पुत्र दस सिरवाला होगा और ‘केसी’ से कहा कि तेरे एक पुत्र होगा जो बड़ा ज्ञानी और हरिभक्त होगा | रावण, कुम्भकर्ण और शूर्पणखा ‘कैकसी’ से हुए और विभीषण ‘केसी’ से हुए | ...(वीर)”
----गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “मानस-पीयूष” खण्ड २ (पुस्तक कोड ८८) से |
श्रीराम जय राम जय जय राम !!
दस सिर ताहि बीस भुजदण्डा (पोस्ट 02)
पुष्पोत्कटा के दो पुत्र हुए –रावण और कुम्भकर्ण | मालिनी से एक पुत्र विभीषण हुआ | राका के गर्भ से खर और शूर्पणखा हुए | यथा—
‘पुष्पोत्कटायां जज्ञाते द्वौ पुत्रौ राक्षसेश्वरौ |
कुम्भकर्ण दशग्रीवौ बलेनाऽप्रतिमौ भुवि ||
मालिनी जनयामास पुत्रमेकं विभीषण् |
राकायां मिथुनं जज्ञे खर:शूर्पणखा तथा ||’
.................(महाभारत वनपर्व अध्याय २७५|७-८)
रावण के दस सिर जन्मजात थे | इसी से उसका नाम प्रथम दशग्रीव था | रावण नाम तो कैलास के नीचे दबने पर हुआ | रावण का अर्थ है रुलाने वाला ..(वाल्मी० ७|१६ देखिये)
वाल्मीकीय के रावणजन्म की कथा तथा उसकी माता का नाम इससे भिन्न है | कथा इस प्रकार है कि विष्णु भगवान् के भय से सुमाली परिवारसहित रसातल में रहने लगा | एकबार जब वह अपनी कुमारी कन्या कैकसी सहित मर्त्यलोक में विचर रहा था, उसी समय कुबेरजी पिता विश्रवा के दर्शनों को जा रहे थे | उनका देवताओं और अग्नि के समान तेज देखकर वह रसातल को लौट आया और राक्षसों की वृद्धि का उपाय सोचकर उसने अपनी कन्या कैकसी से कहा कि तू पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा मुनि को स्वयं जाकर वर | इससे कुबेर के समान तेजस्वी पुत्र तुझे प्राप्त होंगे | पिता की आज्ञा मान कैकसी बिश्रवा मुनि के पास गयी | सायंकाल का समय था | वे अग्निहोत्र कर रहे थे | दारुण प्रदोष काल का उसने विचार न कर वहां जाकर उनके समीप खड़ी हो गयी | उसे देखकर उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो और क्यों आई हो ? उसने उत्तर दिया कि आप तप: प्रभाव से मेरे मन की बात जान सकते हैं | मैं केवल इतना बताये देती हूँ कि मैं केवल अपने पिता की आज्ञा से आयी हूँ और मेरा नाम कैकसी है |
विश्रवा मुनि ध्यान द्वारा सब जानकर उससे कहा की तू दारुण समय में आयी है, इससे तेरे पुत्र बड़े क्रूर कर्म करने वाले और भयंकर आकृति के होंगे | यह सुनकर उसने प्रार्थना की कि आप—ऐसे ब्रह्मवादी से मुझे ऐसे पुत्र न होने चाहिए | आप मुझपर कृपा करें | मुनि ने कहा—‘अच्छा, तेरा पिछ्ला पुत्र वंशानुकूल धर्मात्मा होगा |’
कैकसी के गर्भ से क्रमश: रावण, कुम्भकर्ण, शूर्पणखा उत्पन्न हुए | सबसे पीछे विभीषण हुए |...(वाल्मी०७|९|१-३५)
प्राय: यही कथा अध्यात्मरामायण में है |...(अ०रा० ७|१|४५-५९) | पद्मपुराण-पातालखण्ड में श्री अगस्त्यजी ने श्रीराम दरबार में जो कथा कही है उसमें की ‘कैकसी’ विद्युन्माली दैत्य की कन्या थी | उस कैकसी के ही रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण पुत्र हुए |
यों भी कहा जाता है की रूद्रयामलतंत्र और पद्मपुराण में लिखा है कि कैकसी को रतिदान की स्वीकृति दे मुनि ध्यान में लीन होगये | ध्यान छूटने पर पूछा—उसने कहा कि दस बार मुझे रतिधर्म हुआ है , इससे आशीर्वाद दिया की प्रथम पुत्र दस सिरवाला होगा और ‘केसी’ से कहा कि तेरे एक पुत्र होगा जो बड़ा ज्ञानी और हरिभक्त होगा | रावण, कुम्भकर्ण और शूर्पणखा ‘कैकसी’ से हुए और विभीषण ‘केसी’ से हुए | ...(वीर)”
----गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “मानस-पीयूष” खण्ड २ (पुस्तक कोड ८८) से |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें