॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – आठवाँ
अध्याय..(पोस्ट०६)
नृसिंहभगवान्
का प्रादुर्भाव,
हिरण्यकशिपु का वध
एवं
ब्रह्मादि देवताओं द्वारा भगवान् की स्तुति
न
तद्विचित्रं खलु सत्त्वधामनि
स्वतेजसा
यो नु पुरापिबत्तमः
ततोऽभिपद्याभ्यहनन्महासुरो
रुषा
नृसिंहं गदयोरुवेगया ||२५||
तं
विक्रमन्तं सगदं गदाधरो
महोरगं
तार्क्ष्यसुतो यथाग्रहीत्
स
तस्य हस्तोत्कलितस्तदासुरो
विक्रीडतो
यद्वदहिर्गरुत्मतः ||२६||
समस्त
शक्ति और तेजके आश्रय भगवान् के सम्बन्ध में ऐसी घटना कोई आश्चर्यजनक नहीं है।
क्योंकि सृष्टिके प्रारम्भमें उन्होंने अपने तेजसे प्रलयके निमित्तभूत तमोगुणरूपी
घोर अन्धकारको भी पी लिया था। तदनन्तर वह दैत्य बड़े क्रोधसे लपका और अपनी गदा को
बड़े जोर से घुमाकर उसने नृसिंहभगवान् पर प्रहार किया ॥ २५ ॥ प्रहार करते समय ही—जैसे गरुड़ साँप को पकड़ लेते हैं, वैसे ही भगवान् ने
गदासहित उस दैत्यको पकड़ लिया। वे जब उसके साथ खिलवाड़ करने लगे, तब वह दैत्य उनके हाथसे वैसे ही निकल गया, जैसे
क्रीडा करते हुए गरुडके चंगुलसे साँप छूट जाय ॥ २६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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