।। श्रीहरिः ।।
नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०५)
कई भाई कह देते हैं, हम तो खाली राम-राम करते हैं । ऐसा मत समझो । यह राम-नाम खाली नहीं होता है ? जिस नाम को शंकर जपते हैं, सनकादिक जपते हैं, नारद जी जपते हैं, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, संत-महात्मा जपते हैं, वह नाम मेरे को मिल गया, यह तो मेरा भाग्य ही खुल गया है । ऐसे उसका आदर करो । जहाँ कथा मिल जाय, उसका आदर करो । भगवान् के भक्त मिल जायँ उनका आदर करो । भगवान् की लीला सुननेको मिल जाय, तो प्रसन्न हो जाओ कि यह तो भगवान् ने बड़ी कृपा कर दी । भगवान् मानो हाथ पकड़कर मेरे को अपनी तरफ खींच रहे हैं । भगवान् मेरे सिरपर हाथ रखकर कहते हैं‒‘बेटा ! आ जा ।’ ऐसे मेरेको बुला रहे हैं । भगवान् बुला रहे हैं‒इसकी यही पहचान है कि मेरेको सुननेके लिये भगवान्की कथा मिल गयी । भगवान्की चर्चा मिल गयी । भगवान् का पद मिल गया । भगवत्सम्बन्धी पुस्तक मिल गयी । भगवान् का नाम देखनेमें आ गया ।
मालाके बिना अगर नाम-जप होता हो तो माला की जरूरत नहीं । परन्तु माला के बिना भूल बहुत ज्यादा होती हो तो माला जरूर रखनी चाहिये । माला से भगवान् की याद में मदद मिलती है ।
“माला मनसे लड़ पड़ी, तूँ नहि विसरे मोय ।
बिना शस्त्रके सूरमा लड़ता देख्या न कोय ॥“
बिना शस्त्रके लड़ाई किससे करें ! यह माला शस्त्र है भगवान् को याद करनेका ! भगवान् की बार-बार याद आवे, इस वास्ते भगवान् की याद के लिये माला की बड़ी जरूरत है ।
निरन्तर जप होता है तो माला की कोई जरूरत नहीं, फिर भी माला फेरनी चाहिये, माला फेरने की आवश्यकता है ।
दूसरी आवश्यकता है‒जितना नियम है उतना पूरा हो जाय, उसमें कमी न रह जाय उसके लिये माला है । माला लेने से एक दोष भी आता है । वह यह है कि आज इतना जप पूरा हो गया, बस अब रख दो माला । ऐसा नहीं करना चाहिये । भगवद्भजनमें कभी संतोष न करे । कभी पूरा न माने । धन कमाने में पूरा नहीं मानते । पाँच रुपये रोजाना पैदा होते हैं जिस दुकान में, उस दुकान में सुबह के समय में पचास रुपये पैदा हो गये तो भी दिनभर दुकान खुली रखेंगे । अब दस गुणी पैदा हो गयी तो भी दुकान बंद नहीं करेंगे । परन्तु भगवान् का भजन, नियम पूरा हो जाय तो पुस्तक भी समेट कर रख देंगे, माला भी समेट कर रख देंगे; क्योंकि आज तो नित्य-नियम हो गया । यह बड़ी गलती होती है । माला से यह गलती न हो जाय कहीं कि इतनी माला हो गयी, अब बंद करो । इसमें तो लोभ लगना चाहिये कि माला छोडूँ ही नहीं, ज्यादा-से-ज्यादा करता रहूँ ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०५)
कई भाई कह देते हैं, हम तो खाली राम-राम करते हैं । ऐसा मत समझो । यह राम-नाम खाली नहीं होता है ? जिस नाम को शंकर जपते हैं, सनकादिक जपते हैं, नारद जी जपते हैं, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, संत-महात्मा जपते हैं, वह नाम मेरे को मिल गया, यह तो मेरा भाग्य ही खुल गया है । ऐसे उसका आदर करो । जहाँ कथा मिल जाय, उसका आदर करो । भगवान् के भक्त मिल जायँ उनका आदर करो । भगवान् की लीला सुननेको मिल जाय, तो प्रसन्न हो जाओ कि यह तो भगवान् ने बड़ी कृपा कर दी । भगवान् मानो हाथ पकड़कर मेरे को अपनी तरफ खींच रहे हैं । भगवान् मेरे सिरपर हाथ रखकर कहते हैं‒‘बेटा ! आ जा ।’ ऐसे मेरेको बुला रहे हैं । भगवान् बुला रहे हैं‒इसकी यही पहचान है कि मेरेको सुननेके लिये भगवान्की कथा मिल गयी । भगवान्की चर्चा मिल गयी । भगवान् का पद मिल गया । भगवत्सम्बन्धी पुस्तक मिल गयी । भगवान् का नाम देखनेमें आ गया ।
मालाके बिना अगर नाम-जप होता हो तो माला की जरूरत नहीं । परन्तु माला के बिना भूल बहुत ज्यादा होती हो तो माला जरूर रखनी चाहिये । माला से भगवान् की याद में मदद मिलती है ।
“माला मनसे लड़ पड़ी, तूँ नहि विसरे मोय ।
बिना शस्त्रके सूरमा लड़ता देख्या न कोय ॥“
बिना शस्त्रके लड़ाई किससे करें ! यह माला शस्त्र है भगवान् को याद करनेका ! भगवान् की बार-बार याद आवे, इस वास्ते भगवान् की याद के लिये माला की बड़ी जरूरत है ।
निरन्तर जप होता है तो माला की कोई जरूरत नहीं, फिर भी माला फेरनी चाहिये, माला फेरने की आवश्यकता है ।
दूसरी आवश्यकता है‒जितना नियम है उतना पूरा हो जाय, उसमें कमी न रह जाय उसके लिये माला है । माला लेने से एक दोष भी आता है । वह यह है कि आज इतना जप पूरा हो गया, बस अब रख दो माला । ऐसा नहीं करना चाहिये । भगवद्भजनमें कभी संतोष न करे । कभी पूरा न माने । धन कमाने में पूरा नहीं मानते । पाँच रुपये रोजाना पैदा होते हैं जिस दुकान में, उस दुकान में सुबह के समय में पचास रुपये पैदा हो गये तो भी दिनभर दुकान खुली रखेंगे । अब दस गुणी पैदा हो गयी तो भी दुकान बंद नहीं करेंगे । परन्तु भगवान् का भजन, नियम पूरा हो जाय तो पुस्तक भी समेट कर रख देंगे, माला भी समेट कर रख देंगे; क्योंकि आज तो नित्य-नियम हो गया । यह बड़ी गलती होती है । माला से यह गलती न हो जाय कहीं कि इतनी माला हो गयी, अब बंद करो । इसमें तो लोभ लगना चाहिये कि माला छोडूँ ही नहीं, ज्यादा-से-ज्यादा करता रहूँ ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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