मंगलवार, 9 जुलाई 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१)

प्रह्लादजी द्वारा माता के गर्भ में प्राप्त हुए
नारद जी के उपदेश का वर्णन

सर्वेषामपि भूतानां हरिरात्मेश्वरः प्रियः
भूतैर्महद्भिः स्वकृतैः कृतानां जीवसंज्ञितः ||४९||
देवोऽसुरो मनुष्यो वा यक्षो गन्धर्व एव वा
भजन्मुकुन्दचरणं स्वस्तिमान्स्याद्यथा वयम् ||५०||
नालं द्विजत्वं देवत्वमृषित्वं वासुरात्मजाः
प्रीणनाय मुकुन्दस्य न वृत्तं न बहुज्ञता ||५१||
न दानं न तपो नेज्या न शौचं न व्रतानि च
प्रीयतेऽमलया भक्त्या हरिरन्यद्विडम्बनम् ||५२||
ततो हरौ भगवति भक्तिं कुरुत दानवाः
आत्मौपम्येन सर्वत्र सर्वभूतात्मनीश्वरे ||५३||

भगवान्‌ श्रीहरि समस्त प्राणियोंके ईश्वर, आत्मा और परम प्रियतम हैं। वे अपने ही बनाये हुए पञ्चभूत और सूक्ष्मभूत आदिके द्वारा निर्मित शरीरोंमें जीवके नामसे कहे जाते हैं ॥ ४९ ॥ देवता, दैत्य, मनुष्य यक्ष अथवा गन्धर्वकोई भी क्यों न होजो भगवान्‌के चरणकमलोंका सेवन करता है, वह हमारे ही समान कल्याणका भाजन होता है ॥ ५० ॥
दैत्यबालको ! भगवान्‌को प्रसन्न करनेके लिये ब्राह्मण, देवता या ऋषि होना, सदाचार और विविध ज्ञानों से सम्पन्न होना तथा दान, तप, यज्ञ, शारीरिक और मानसिक शौच और बड़े-बड़े व्रतोंका अनुष्ठान पर्याप्त नहीं है। भगवान्‌ केवल निष्काम प्रेम-भक्तिसे ही प्रसन्न होते हैं। और सब तो विडम्बनामात्र हैं ॥ ५१-५२ ॥ इसलिये दानव-बन्धुओ ! समस्त प्राणियोंको अपने समान ही समझकर सर्वत्र विराजमान, सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान् भगवान्‌की भक्ति करो ॥ ५३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...