॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – दसवाँ
अध्याय..(पोस्ट०४)
प्रह्लादजी
के राज्याभिषेक और त्रिपुरदहन की कथा
श्रीनारद
उवाच
प्रह्रादोऽपि
तथा चक्रे पितुर्यत्साम्परायिकम्
यथाह
भगवान्राजन्नभिषिक्तो द्विजातिभिः ॥ २४ ॥
प्रसादसुमुखं
दृष्ट्वा ब्रह्मा नरहरिं हरिम्
स्तुत्वा
वाग्भिः पवित्राभिः प्राह देवादिभिर्वृतः ॥ २५ ॥
श्रीब्रह्मोवाच
देवदेवाखिलाध्यक्ष
भूतभावन पूर्वज
दिष्ट्या
ते निहतः पापो लोकसन्तापनोऽसुरः ॥ २६ ॥
योऽसौ
लब्धवरो मत्तो न वध्यो मम सृष्टिभिः
तपोयोगबलोन्नद्धः
समस्तनिगमानहन् ॥ २७ ॥
दिष्ट्या
तत्तनयः साधुर्महाभागवतोऽर्भकः
त्वया
विमोचितो मृत्योर्दिष्ट्या त्वां समितोऽधुना ॥ २८ ॥
एतद्वपुस्ते
भगवन्ध्यायतः परमात्मनः
सर्वतो
गोप्तृ सन्त्रासान्मृत्योरपि जिघांसतः ॥ २९ ॥
श्रीभगवानुवाच
मैवं
विभोऽसुराणां ते प्रदेयः पद्मसम्भव
वरः
क्रूरनिसर्गाणामहीनाममृतं यथा ॥ ३० ॥
नारदजी
कहते हैं—युधिष्ठिर ! भगवान्की आज्ञाके अनुसार प्रह्लादजीने अपने पिताकी
अन्त्येष्टि- क्रिया की, इसके बाद श्रेष्ठ ब्राह्मणोंने उनका
राज्याभिषेक किया ॥ २४ ॥ इसी समय देवता, ऋषि आदिके साथ
ब्रह्माजीने नृसिंहभगवान्को प्रसन्नवदन देखकर पवित्र वचनोंके द्वारा उनकी स्तुति
की और उनसे यह बात कही ॥ २५ ॥
ब्रह्माजीने
कहा—देवताओंके आराध्यदेव ! आप सर्वान्तर्यामी, जीवोंके
जीवनदाता और मेरे भी पिता हैं। यह पापी दैत्य लोगोंको बहुत ही सता रहा था। यह बड़े
सौभाग्यकी बात है कि आपने इसे मार डाला ॥ २६ ॥ मैंने इसे वर दे दिया था कि मेरी
सृष्टिका कोई भी प्राणी तुम्हारा वध न कर सकेगा। इससे यह मतवाला हो गया था। तपस्या,
योग और बलके कारण उच्छृङ्खल होकर इसने वेदविधियोंका उच्छेद कर दिया
था ॥ २७ ॥ यह भी बड़े सौभाग्यकी बात है कि इसके पुत्र परमभागवत शुद्धहृदय
नन्हें-से-शिशु प्रह्लादको आपने मृत्युके मुखसे छुड़ा दिया तथा यह भी बड़े आनन्द
और मङ्गलकी बात है कि वह अब आपकी शरणमें है ॥ २८ ॥ भगवन् ! आपके इस नृसिंहरूपका
ध्यान जो कोई एकाग्र मनसे करेगा, उसे यह सब प्रकारके भयोंसे
बचा लेगा। यहाँतक कि मारनेकी इच्छासे आयी हुई मृत्यु भी उसका कुछ न बिगाड़ सकेगी ॥
२९ ॥
श्रीनृसिंहभगवान्
बोले—ब्रह्माजी ! आप दैत्योंको ऐसा वर न दिया करें। जो स्वभावसे ही क्रूर हैं,
उनको दिया हुआ वर तो वैसा ही है जैसा साँपोंको दूध पिलाना ॥ ३० ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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