॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – नवाँ
अध्याय..(पोस्ट०४)
प्रह्लादजी
के द्वारा नृसिंहभगवान् की स्तुति
सर्वे
ह्यमी विधिकरास्तव सत्त्वधाम्नो
ब्रह्मादयो
वयमिवेश न चोद्विजन्तः
क्षेमाय
भूतय उतात्मसुखाय चास्य
विक्रीडितं
भगवतो रुचिरावतारैः ||१३||
तद्यच्छ
मन्युमसुरश्च हतस्त्वयाद्य
मोदेत
साधुरपि वृश्चिकसर्पहत्या
लोकाश्च
निर्वृतिमिताः प्रतियन्ति सर्वे
रूपं
नृसिंह विभयाय जनाः स्मरन्ति ||१४||
नाहं
बिभेम्यजित तेऽतिभयानकास्य
जिह्वार्कनेत्रभ्रुकुटीरभसोग्रदंष्ट्रात्
आन्त्रस्रजःक्षतजकेशरशङ्कुकर्णान्
निर्ह्रादभीतदिगिभादरिभिन्नखाग्रात्
||१५||
भगवन्
! आप सत्त्वगुण के आश्रय हैं। ये ब्रह्मा आदि सभी देवता आपके आज्ञाकारी भक्त हैं।
ये हम दैत्योंकी तरह आपसे द्वेष नहीं करते। प्रभो ! आप बड़े-बड़े सुन्दर-सुन्दर
अवतार ग्रहण करके इस जगत्के कल्याण एवं अभ्युदयके लिये तथा उसे आत्मानन्दकी
प्राप्ति करानेके लिये अनेकों प्रकार की लीलाएँ करते हैं ॥ १३ ॥ जिस असुरको
मारनेके लिये आपने क्रोध किया था, वह मारा जा चुका। अब आप अपना
क्रोध शान्त कीजिये। जैसे बिच्छू और साँपकी मृत्युसे सज्जन भी सुखी ही होते हैं,
वैसे ही इस दैत्यके संहारसे सभी लोगोंको बड़ा सुख मिला है। अब सब
आपके शान्त स्वरूपके दर्शनकी बाट जोह रहे हैं। नृसिंहदेव ! भयसे मुक्त होनेके लिये
भक्तजन आपके इस रूपका स्मरण करेंगे ॥ १४ ॥ परमात्मन् ! आपका मुख बड़ा भयावना है।
आपकी जीभ लपलपा रही है। आँखें सूर्यके समान हैं। भौंहें चढ़ी हुई हैं। बड़ी पैनी
दाढ़ें हैं। आँतोंकी माला, खूनसे लथपथ गरदनके बाल, बर्छेकी तरह सीधे खड़े कान और दिग्गजोंको भी भयभीत कर देनेवाला सिंहनाद
एवं शत्रुओंको फाड़ डालनेवाले आपके इन नखोंको देखकर मैं तनिक भी भयभीत नहीं हुआ
हूँ ॥ १५ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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