सोमवार, 8 जुलाई 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१)

प्रह्लादजी द्वारा माता के गर्भ में प्राप्त हुए
नारद जी के उपदेश का वर्णन

यदर्थ इह कर्माणि विद्वन्मान्यसकृन्नरः
करोत्यतो विपर्यासममोघं विन्दते फलम् ||४१||
सुखाय दुःखमोक्षाय सङ्कल्प इह कर्मिणः
सदाप्नोतीहया दुःखमनीहायाः सुखावृतः ||४२||

इसके सिवा अपने को बड़ा विद्वान् माननेवाला पुरुष इस लोक में जिस उद्देश्य से बार-बार बहुत-से कर्म करता है, उस उद्देश्यकी प्राप्ति तो दूर रहीउलटा उसे उसके विपरीत ही फल मिलता है और निस्सन्देह मिलता है ॥ ४१ ॥ कर्म में प्रवृत्त होने के दो ही उद्देश्य होते हैंसुख पाना और दु:ख से छूटना। परंतु जो पहले कामना न होने के कारण सुखमें निमग्न रहता था, उसे ही अब कामना के कारण यहाँ सदा-सर्वदा दु:ख ही भोगना पड़ता है ॥ ४२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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