शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट१७)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट१७)

प्रह्लादजी के द्वारा नृसिंहभगवान्‌ की स्तुति

नैते गुणा न गुणिनो महदादयो ये
सर्वे मनः प्रभृतयः सहदेवमर्त्याः
आद्यन्तवन्त उरुगाय विदन्ति हि त्वाम्
एवं विमृश्य सुधियो विरमन्ति शब्दात् ||४९||
तत्तेऽर्हत्तम नमः स्तुतिकर्मपूजाः
कर्म स्मृतिश्चरणयोः श्रवणं कथायाम्
संसेवया त्वयि विनेति षडङ्गया किं
भक्तिं जनः परमहंसगतौ लभेत ||५०||

समग्र कीर्तिके आश्रय भगवन् ! ये सत्त्वादि गुण और इन गुणोंके परिणाम महत्तत्त्वादि, देवता, मनुष्य एवं मन आदि कोई भी आपका स्वरूप जाननेमें समर्थ नहीं है; क्योंकि ये सब आदि-अन्तवाले हैं और आप अनादि एवं अनन्त हैं। ऐसा विचार करके ज्ञानीजन शब्दोंकी मायासे उपरत हो जाते हैं ॥ ४९ ॥ परम पूज्य ! आपकी सेवाके छ: अङ्ग हैंनमस्कार, स्तुति, समस्त कर्मोंका समर्पण, सेवा-पूजा, चरणकमलोंका चिन्तन और लीला-कथाका श्रवण। इस षडङ्ग-सेवा के बिना आप के चरण कमलों की भक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है ? और भक्ति के बिना आपकी प्राप्ति कैसे होगी ? प्रभो ! आप तो अपने परम प्रिय भक्तजनों के, परमहंसों के ही सर्वस्व हैं ॥ ५० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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