सोमवार, 29 जुलाई 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

प्रह्लादजी के राज्याभिषेक और त्रिपुरदहन की कथा

आख्यातं सर्वमेतत्ते यन्मां त्वं परिपृष्टवान्
दमघोषसुतादीनां हरेः सात्म्यमपि द्विषाम् ॥ ४१ ॥
एषा ब्रह्मण्यदेवस्य कृष्णस्य च महात्मनः
अवतारकथा पुण्या वधो यत्रादिदैत्ययोः ॥ ४२ ॥
प्रह्लादस्यानुचरितं महाभागवतस्य च
भक्तिर्ज्ञानं विरक्तिश्च याथार्थ्यं चास्य वै हरेः ॥ ४३ ॥
सर्गस्थित्यप्ययेशस्य गुणकर्मानुवर्णनम्
परावरेषां स्थानानां कालेन व्यत्ययो महान् ॥ ४४ ॥
धर्मो भागवतानां च भगवान्येन गम्यते
आख्यानेऽस्मिन्समाम्नातमाध्यात्मिकमशेषतः ॥ ४५ ॥
य एतत्पुण्यमाख्यानं विष्णोर्वीर्योपबृंहितम्
कीर्तयेच्छ्रद्धया श्रुत्वा कर्मपाशैर्विमुच्यते ॥ ४६ ॥
एतद्य आदिपुरुषस्य मृगेन्द्र लीलां
दैत्येन्द्र यूथपवधं प्रयतः पठेत
दैत्यात्मजस्य च सतां प्रवरस्य पुण्यं
श्रुत्वानुभावमकुतोभयमेति लोकम् ॥ ४७ ॥

युधिष्ठिर ! तुमने मुझसे पूछा था कि भगवान्‌ से द्वेष करनेवाले शिशुपाल आदि को उनके सारूप्य की प्राप्ति कैसे हुई। उसका उत्तर मैंने तुम्हें दे दिया ॥ ४१ ॥ ब्रह्मण्यदेव परमात्मा श्रीकृष्ण का यह परम पवित्र अवतार-चरित्र है। इसमें हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु इन दोनों दैत्यों के वध का वर्णन है ॥ ४२ ॥ इस प्रसङ्ग में भगवान्‌ के परम भक्त प्रह्लादका चरित्र, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य; एवं संसारकी सृष्टि, स्थिति और प्रलयके स्वामी श्रीहरिके यथार्थ स्वरूप तथा उनके दिव्य गुण एवं लीलाओंका वर्णन है। इस आख्यानमें देवता और दैत्योंके पदोंमें कालक्रमसे जो महान् परिवर्तन होता है, उसका भी निरूपण किया गया है ॥ ४३-४४ ॥ जिसके द्वारा भगवान्‌की प्राप्ति होती है, उस भागवतधर्मका भी वर्णन है। अध्यात्मके सम्बन्धमें भी सभी जाननेयोग्य बातें इसमें हैं ॥ ४५ ॥ भगवान्‌के पराक्रमसे पूर्ण इस पवित्र आख्यानको जो कोई पुरुष श्रद्धासे कीर्तन करता और सुनता है, वह कर्मबन्धनसे मुक्त हो जाता है ॥ ४६ ॥ जो मनुष्य परम पुरुष परमात्माकी यह श्रीनृसिंह- लीला, सेनापतियोंसहित हिरण्यकशिपुका वध और संतशिरोमणि प्रह्लादजीका पावन प्रभाव एकाग्र मनसे पढ़ता और सुनता है, वह भगवान्‌के अभयपद वैकुण्ठको प्राप्त होता है ॥ ४७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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