गुरुवार, 15 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

गृहस्थोंके लिये मोक्षधर्मका वर्णन

षड्वर्गसंयमैकान्ताः सर्वा नियमचोदनाः
तदन्ता यदि नो योगानावहेयुः श्रमावहाः २८
यथा वार्तादयो ह्यर्था योगस्यार्थं न बिभ्रति
अनर्थाय भवेयुः स्म पूर्तमिष्टं तथासतः २९

शास्त्रोंमें जितने भी नियमसम्बन्धी आदेश हैं, उनका एकमात्र तात्पर्य यही है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सरइन छ: शत्रुओंपर विजय प्राप्त कर ली जाय अथवा पाँचों इन्द्रिय और मनये छ: वशमें हो जायँ। ऐसा होनेपर भी यदि उन नियमोंके द्वारा भगवान्‌के ध्यान-चिन्तन आदिकी प्राप्ति नहीं होती, तो उन्हें केवल श्रम-ही-श्रम समझना चाहिये ॥ २८ ॥ जैसे खेती, व्यापार आदि और उनके फल भी योग-साधनाके फल भगवत्प्राप्ति या मुक्तिको नहीं दे सकतेवैसे ही दुष्ट पुरुषके श्रौत-स्मार्त कर्म भी कल्याणकारी नहीं होते, प्रत्युत उलटा फल देते हैं ॥ २९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




1 टिप्पणी:

  1. 🌹🌼🌺जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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