॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – पंद्रहवाँ
अध्याय..(पोस्ट१०)
गृहस्थोंके
लिये मोक्षधर्मका वर्णन
यावन्नृकायरथमात्मवशोपकल्पं
धत्ते
गरिष्ठचरणार्चनया निशातम्
ज्ञानासिमच्युतबलो
दधदस्तशत्रुः
स्वानन्दतुष्ट
उपशान्त इदं विजह्यात् ॥ ४५ ॥
नोचेत्प्रमत्तमसदिन्द्रियवाजिसूता
नीत्वोत्पथं
विषयदस्युषु निक्षिपन्ति
ते
दस्यवः सहयसूतममुं तमोऽन्धे
संसारकूप
उरुमृत्युभये क्षिपन्ति ॥ ४६ ॥
यह
मनुष्य-शरीररूप रथ जबतक अपने वशमें है और इसके इन्द्रिय मन-आदि सारे साधन अच्छी
दशामें विद्यमान हैं,
तभीतक श्रीगुरुदेवके चरणकमलोंकी सेवा-पूजासे शान धरायी हुई ज्ञानकी
तीखी तलवार लेकर भगवान्के आश्रयसे इन शत्रुओंका नाश करके अपने स्वराज्य-सिंहासनपर
विराजमान हो जाय और फिर अत्यन्त शान्तभावसे इस शरीरका भी परित्याग कर दे ॥ ४५ ॥
नहीं तो, तनिक भी प्रमाद हो जानेपर ये इन्द्रियरूप दुष्ट
घोड़े और उनसे मित्रता रखनेवाला बुद्धिरूप सारथि रथके स्वामी जीव को उलटे रास्ते
ले जाकर विषयरूपी लुटेरों के हाथों में डाल देंगे। वे डाकू सारथि और घोड़ों के
सहित इस जीव को मृत्युसे अत्यन्त भयावने घोर अन्धकारमय संसारके कुएँमें गिरा देंगे
॥ ४६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि: शरणम्🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 💐🌺🌾🙏🙏🙏