रविवार, 18 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट१२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट१२)

गृहस्थोंके लिये मोक्षधर्मका वर्णन

निषेकादिश्मशानान्तैः संस्कारैः संस्कृतो द्विजः
इन्द्रियेषु क्रियायज्ञान्ज्ञानदीपेषु जुह्वति ५२
इन्द्रियाणि मनस्यूर्मौ वाचि वैकारिकं मनः
वाचं वर्णसमाम्नाये तमोङ्कारे स्वरे न्यसेत् ५३
ॐकारं बिन्दौ नादे तं तं तु प्राणे महत्यमुम्
अग्निः सूर्यो दिवा प्राह्णः शुक्लो राकोत्तरं स्वराट्
विश्वोऽथ तैजसः प्राज्ञस्तुर्य आत्मा समन्वयात् ५४
देवयानमिदं प्राहुर्भूत्वा भूत्वानुपूर्वशः
आत्मयाज्युपशान्तात्मा ह्यात्मस्थो न निवर्तते ५५

युधिष्ठिर ! गर्भाधानसे लेकर अन्त्येष्टिपर्यन्त सम्पूर्ण संस्कार जिनके होते हैं, उनको द्विजकहते हैं। (उनमेंसे कुछ तो पूर्वोक्त प्रवृत्तिमार्गका अनुष्ठान करते हैं और कुछ आगे कहे जानेवाले निवृत्तिमार्गका।) निवृत्तिपरायण पुरुष इष्ट, पूर्त्त आदि कर्मों से होने वाले समस्त यज्ञों को विषयों का ज्ञान करानेवाले इन्द्रियोंमें हवन कर देता है ॥ ५२ ॥ इन्द्रियोंको दर्शनादि-संकल्परूप मनमें, वैकारिक मनको परा वाणीमें और परा वाणीको वर्णसमुदायमें, वर्णसमुदायको अ उ म्इन तीन स्वरोंके रूपमें रहनेवाले ॐ कारमें ॐ कारको बिन्दुमें, बिन्दुको नादमें, नादको सूत्रात्मारूप प्राणमें तथा प्राणको ब्रह्ममें लीन कर देता है ॥ ५३ ॥ वह निवृत्तिनिष्ठ ज्ञानी क्रमश: अग्रि, सूर्य, दिन, सायंकाल, शुक्लपक्ष, पूर्णमासी और उत्तरायणके अभिमानी देवताओंके पास जाकर ब्रह्मलोकमें पहुँचता है और वहाँके भोग समाप्त होनेपर वह स्थूलोपाधिक विश्वअपनी स्थूल उपाधिको सूक्ष्ममें लीन करके सूक्ष्मोपाधिक तैजसहो जाता है। फिर सूक्ष्म उपाधिको कारणमें लय करके कारणोपाधिक प्राज्ञरूपसे स्थित होता है; फिर सबके साक्षीरूपसे सर्वत्र अनुगत होनेके कारण साक्षीके ही स्वरूपमें कारणोपाधिका लय करके तुरीयरूपसे स्थित होता है। इस प्रकार दृश्योंका लय हो जानेपर वह शुद्ध आत्मा रह जाता है। यही मोक्षपद है ॥ ५४ ॥ इसे देवयानमार्ग कहते हैं। इस मार्ग से जानेवाला आत्मोपासक संसार की ओर से निवृत्त होकर क्रमश: एक से दूसरे देवता के पास होता हुआ ब्रह्मलोक में जाकर अपने स्वरूपमें स्थित हो जाता है। वह प्रवृत्तिमार्गी के समान फिर जन्म-मृत्यु के चक्कर में नहीं पड़ता ॥ ५५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




1 टिप्पणी:

  1. 🌺💐🌺जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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