॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – चौदहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०५)
गृहस्थसम्बन्धी
सदाचार
अथ
देशान् प्रवक्ष्यामि धर्मादिश्रेय आवहान् ।
स
वै पुण्यतमो देशः सत्पात्रं यत्र लभ्यते ॥ २७ ॥
बिम्बं
भगवतो यत्र सर्वमेतच्चराचरम् ।
यत्र
ह ब्राह्मणकुलं तपोविद्यादयान्वितम् ॥ २८ ॥
यत्र
यत्र हरेरर्चा स देशः श्रेयसां पदम् ।
यत्र
गंगादयो नद्यः पुराणेषु च विश्रुताः ॥ २९ ॥
सरांसि
पुष्करादीनि क्षेत्राण्यर्हाश्रितान्युत ।
कुरुक्षेत्रं
गयशिरः प्रयागः पुलहाश्रमः ॥ ३० ॥
नैमिषं
फाल्गुनं सेतुः प्रभासोऽथ कुशस्थली ।
वाराणसी
मधुपुरी पम्पा बिन्दुसरस्तथा ॥ ३१ ॥
नारायणाश्रमो
नन्दा सीतारामाश्रमादयः ।
सर्वे
कुलाचला राजन् महेन्द्रमलयादयः ॥ ३२ ॥
एते
पुण्यतमा देशा हरेरर्चाश्रिताश्च ये ।
एतान्देशान्
निषेवेत श्रेयस्कामो ह्यभीक्ष्णशः ।
धर्मो
ह्यत्रेहितः पुंसां सहस्राधिफलोदयः ॥ ३३ ॥
युधिष्ठिर
! अब मैं उन स्थानोंका वर्णन करता हूँ, जो धर्म आदि
श्रेयकी प्राप्ति करानेवाले हैं। सबसे पवित्र देश वह है, जिसमें
सत्पात्र मिलते हों ॥ २७ ॥ जिनमें यह सारा चर और अचर जगत् स्थित है, उन भगवान्की प्रतिमा जिस देशमें हो, जहाँ तप,
विद्या एवं दया आदि गुणोंसे युक्त ब्राह्मणोंके परिवार निवास करते
हों तथा जहाँ-जहाँ भगवान्की पूजा होती हो और पुराणोंमें प्रसिद्ध गङ्गा आदि
नदियाँ हों, वे सभी स्थान परम कल्याणकारी हैं ॥ २८-२९ ॥
पुष्कर आदि सरोवर, सिद्ध पुरुषोंके द्वारा सेवित क्षेत्र,
कुरुक्षेत्र, गया, प्रयाग,
पुलहाश्रम (शालग्रामक्षेत्र) नैमिषारण्य, फाल्गुनक्षेत्र,
सेतुबन्ध, प्रभास, द्वारका,
काशी, मथुरा, पम्पासर,
बिन्दुसरोवर, बदरिकाश्रम, अलकनन्दा, भगवान् सीतारामजीके आश्रम—अयोध्या-चित्रकूटादि, महेन्द्र और मलय आदि समस्त
कुलपर्वत और जहाँ-जहाँ भगवान्के अर्चावतार हैं—वे सब-के-सब
देश अत्यन्त पवित्र हैं। कल्याणकामी पुरुषको बार-बार इन देशोंका सेवन करना चाहिये।
इन स्थानोंपर जो पुण्यकर्म किये जाते हैं, मनुष्योंको उनका
हजारगुना फल मिलता है ॥ ३०—३३ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
हरि कृपा ही केवलम🙏🌹🌾🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि: !!🙏🙏🌸🌺💐