शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०६)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०६)

मन्वन्तरोंका वर्णन

श्रीराजोवाच

बादरायण एतत्ते श्रोतुमिच्छामहे वयम्
हरिर्यथा गजपतिं ग्राहग्रस्तममूमुचत् ||३१||
तत्कथासु महत्पुण्यं धन्यं स्वस्त्ययनं शुभम्
यत्र यत्रोत्तमश्लोको भगवान्गीयते हरिः ||३२||

श्रीसूत उवाच

परीक्षितैवं स तु बादरायणिः
प्रायोपविष्टेन कथासु चोदितः|
उवाच विप्राः प्रतिनन्द्य पार्थिवं
मुदा मुनीनां सदसि स्म शृण्वताम् ||३३||

राजा परीक्षित्‌ ने पूछामुनिवर ! हम आपसे यह सुनना चाहते हैं कि भगवान्‌ ने गजेन्द्र को ग्राह के फंदे से कैसे छुड़ाया था ॥ ३१ ॥ सब कथाओं में वही कथा परम पुण्यमय, प्रशंसनीय, मङ्गलकारी और शुभ है, जिसमें महात्माओं के द्वारा गान किये हुए भगवान्‌ श्रीहरि के पवित्र यशका वर्णन रहता है ॥ ३२ ॥
सूतजी कहते हैंशौनकादि ऋषियो ! राजा परीक्षित्‌ आमरण अनशन करके कथा सुनने के लिये ही बैठे हुए थे। उन्होंने जब श्रीशुकदेव जी महाराज को इस प्रकार कथा कहने के लिये प्रेरित किया, तब वे बड़े आनन्दित हुए और प्रेम से परीक्षित्‌ का अभिनन्दन करके मुनियों की भरी सभा में कहने लगे ॥ ३३ ॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायामष्टमस्कन्धे
मन्वन्तरानुचरिते प्रथमोऽध्यायः

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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