॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट०९)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ||२२||
यथार्चिषोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्यसकृत्स्वरोचिषः|
तथा यतोऽयं गुणसम्प्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ||२३||
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यङ्
न स्त्री न षण्ढो न पुमान्न जन्तुः|
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन्नि-
षेधशेषो जयतादशेषः ||२४||
जिनकी अत्यन्त छोटी कला से अनेकों नाम-रूपके भेद-भावसे
युक्त ब्रह्मा आदि देवता,
वेद और चराचर लोकोंकी सृष्टि हुई है, जैसे धधकती हुई आगसे लपटें और प्रकाशमान सूर्यसे उनकी
किरणें बार-बार निकलती और लीन होती रहती हैं, वैसे ही जिन स्वयंप्रकाश परमात्मासे बुद्धि, मन,
इन्द्रिय और शरीर—जो गुणोंके प्रवाहरूप हैं—बार-बार प्रकट
होते तथा लीन हो जाते हैं,
वे भगवान् न देवता हैं और न असुर। वे मनुष्य और पशु-पक्षी
भी नहीं हैं। न वे स्त्री हैं, न पुरुष और न
नपुंसक। वे कोई साधारण या असाधारण प्राणी भी नहीं हैं। न वे गुण हैं और न कर्म, न कार्य हैं और न तो कारण ही। सबका निषेध हो जानेपर जो कुछ
बच रहता है,
वही उनका स्वरूप है तथा वे ही सब कुछ हैं। वे ही परमात्मा
मेरे उद्धारके लिये प्रकट हों ॥ २२—२४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंSankat aana Achchha hai.Tabhi to Sabhi Rishtedaar , Bandu badhav ityadi Saath Chhod dete hain Aur Jeev ka Param Aashray Parmatma yaad Aate hain.
जवाब देंहटाएं💐🍂🌺जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंहे मम जीवन के जीवन धन तुम्हें शत शत प्रणाम 🙏🙏🙏🙏
Om namo bhagvate vasudevai!
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