रविवार, 25 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०४)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०४)

ग्राहके द्वारा गजेन्द्रका पकड़ा जाना

तं तत्र कश्चिन्नृप दैवचोदितो
     ग्राहो बलीयांश्चरणे रुषाग्रहीत् ।
यदृच्छयैवं व्यसनं गतो गजो
     यथाबलं सोऽतिबलो विचक्रमे ॥ २७ ॥
तथाऽऽतुरं यूथपतिं करेणवो
     विकृष्यमाणं तरसा बलीयसा ।
विचुक्रुशुर्दीनधियोऽपरे गजाः
     पार्ष्णिग्रहास्तारयितुं न चाशकन् ॥ २८ ॥
नियुध्यतोरेवमिभेन्द्रनक्रयोः
     विकर्षतोरन्तरतो बहिर्मिथः ।
समाः सहस्रं व्यगमन् महीपते
     सप्राणयोश्चित्रममंसतामराः ॥ २९ ॥

परीक्षित्‌ ! गजेन्द्र जिस समय इतना उन्मत्त हो रहा था, उसी समय प्रारब्धकी प्रेरणासे एक बलवान् ग्राहने क्रोधमें भरकर उसका पैर पकड़ लिया। इस प्रकार अकस्मात् विपत्तिमें पडक़र उस बलवान् गजेन्द्रने अपनी शक्तिके अनुसार अपनेको छुड़ानेकी बड़ी चेष्टा की, परंतु छुड़ा न सका ॥ २७ ॥ दूसरे हाथी, हथिनियों और उनके बच्चोंने देखा कि उनके स्वामीको बलवान् ग्राह बड़े वेगसे खींच रहा है और वे बहुत घबरा रहे हैं। उन्हें बड़ा दु:ख हुआ। वे बड़ी विकलतासे चिग्घाडऩे लगे। बहुतोंने उसे सहायता पहुँचाकर जलसे बाहर निकाल लेना चाहा, परंतु इसमें भी वे असमर्थ ही रहे ॥ २८ ॥ गजेन्द्र और ग्राह अपनी-अपनी पूरी शक्ति लगाकर भिड़े हुए थे। कभी गजेन्द्र ग्राहको बाहर खींच लाता, तो कभी ग्राह गजेन्द्र को भीतर खींच ले जाता। परीक्षित्‌ ! इस प्रकार उनको लड़ते-लड़ते एक हजार वर्ष बीत गये और दोनों ही जीते रहे। यह घटना देखकर देवता भी आश्चर्यचकित हो गये ॥ २९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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