॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट१३)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
स त्वं नो दर्शयात्मानं अस्मत् करणगोचरम् ।
प्रपन्नानां दिदृक्षूणां सस्मितं ते मुखाम्बुजम् ॥ ४५ ॥
तैस्तैः स्वेच्छाधृतै रूपैः काले काले स्वयं विभो ।
कर्म दुर्विषहं यन्नो भगवान् तत्करोति हि ॥ ४६ ॥
क्लेशभूर्यल्पसाराणि कर्माणि विफलानि वा ।
देहिनां विषयार्तानां न तथैवार्पितं त्वयि ॥ ४७ ॥
प्रभो ! हम आपके शरणागत हैं और चाहते हैं कि मन्द-मन्द
मुसकानसे युक्त आपका मुखकमल अपने इन्हीं नेत्रोंसे देखें। आप कृपा करके हमें उसका
दर्शन कराइये ॥ ४५ ॥
प्रभो ! आप समय-समयपर स्वयं ही अपनी इच्छासे अनेकों रूप
धारण करते हैं और जो काम हमारे लिये अत्यन्त कठिन होता है, उसे आप सहजमें ही कर देते हैं। आप सर्वशक्तिमान् हैं, आपके लिये इसमें कौन-सी कठिनाई है ॥ ४६ ॥ विषयोंके लोभमें
पडक़र जो देहाभिमानी दु:ख भोग रहे हैं, उन्हें कर्म करनेमें परिश्रम और क्लेश तो बहुत अधिक होता है; परंतु फल बहुत कम निकलता है। अधिकांशमें तो उनके विफलता ही
हाथ लगती है। परंतु जो कर्म आपको समर्पित किये जाते हैं, उनके करनेके समय ही परम सुख मिलता है। वे स्वयं फलरूप ही
हैं ॥ ४७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरी
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌾जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण