॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट१२)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
लोभोऽधरात् प्रीतिरुपर्यभूद् द्युतिः
नस्तः पशव्यः
स्पर्शेन कामः ।
भ्रुवोर्यमः पक्ष्मभवस्तु कालः
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ४२ ॥
द्रव्यं वयः कर्म गुणान्विशेषं
यद्योगमायाविहितान्वदन्ति ।
यद्दुर्विभाव्यं प्रबुधापबाधं
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ४३ ॥
नमोऽस्तु तस्मा उपशान्तशक्तये
स्वाराज्यलाभप्रतिपूरितात्मने ।
गुणेषु मायारचितेषु वृत्तिभिः
न सज्जमानाय
नभस्वदूतये ॥ ४४ ॥
जिनके अधरसे लोभ और ओष्ठसे प्रीति, नासिकासे कान्ति, स्पर्शसे पशुओंका प्रिय काम, भौंहोंसे यम
और नेत्रके रोमोंसे कालकी उत्पत्ति हुई है—वे परम ऐश्वर्यशाली भगवान् हमपर प्रसन्न हों ॥ ४२ ॥ पञ्चभूत, काल,
कर्म, सत्त्वादि गुण
और जो कुछ विवेकी पुरुषोंके द्वारा बाधित किये जाने योग्य निर्वचनीय या अनिर्वचनीय
विशेष पदार्थ हैं,
वे सब-के-सब भगवान्की योगमायासे ही बने हैं—ऐसा शास्त्र कहते हैं। वे परम ऐश्वर्यशाली भगवान् हम पर
प्रसन्न हों ॥ ४३ ॥ जो मायानिर्मित गुणोंमें दर्शनादि वृत्तियोंके द्वारा आसक्त
नहीं होते,
जो वायु के समान सदा-सर्वदा असङ्ग रहते हैं, जिनमें समस्त शक्तियाँ शान्त हो गयी हैं—उन अपने आत्मानन्द के लाभ से परिपूर्ण आत्मस्वरूप भगवान् को
हमारे नमस्कार हैं ॥ ४४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌷जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण