॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट१४)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
नावमः कर्मकल्पोऽपि विफलायेश्वरार्पितः ।
कल्पते पुरुषस्यैव स ह्यात्मा दयितो हितः ॥ ४८ ॥
यथा हि स्कन्धशाखानां तरोर्मूलावसेचनम् ।
एवं आराधनं विष्णोः सर्वेषां आत्मनश्च हि ॥ ४९ ॥
नमस्तुभ्यं अनन्ताय दुर्वितर्क्यात्मकर्मणे ।
निर्गुणाय गुणेशाय सत्त्वस्थाय च साम्प्रतम् ॥ ५० ॥
भगवान् को समर्पित किया हुआ छोटे-से-छोटा कर्माभास भी कभी
विफल नहीं होता। क्योंकि भगवान् जीव के परम हितैषी, परम प्रियतम और आत्मा ही हैं ॥ ४८ ॥ जैसे वृक्षकी जडक़ो पानीसे सींचना उसकी
बड़ी-बड़ी शाखाओं और छोटी-छोटी डालियों को भी सींचना है, वैसे ही सर्वात्मा भगवान् की आराधना सम्पूर्ण प्राणियों की
और अपनी भी आराधना है ॥ ४९ ॥ जो तीनों काल और उससे परे भी एकरस स्थित हैं, जिनकी लीलाओंका रहस्य तर्क-वितर्कके परे है, जो स्वयं गुणोंसे परे रहकर भी सब गुणोंके स्वामी हैं तथा इस
समय सत्त्वगुणमें स्थित हैं—ऐसे आपको हम
बार-बार नमस्कार करते हैं ॥ ५० ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
अष्टमस्कन्धे अमृतमथने पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏💐
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएं🌸🍂🌷जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण