बुधवार, 11 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०१)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०१)

देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना

श्रीशुक उवाच
एवं स्तुतः सुरगणैः भवान् हरिरीश्वरः ।
तेषां आविरभूद् राजन् सहस्रार्कोदयद्युतिः ॥ १ ॥
तेनैव सहसा सर्वे देवाः प्रतिहतेक्षणाः ।
नापश्यन् खं दिशः क्षौणीं आत्मानं च कुतो विभुम् ॥ २ ॥
विरिञ्चो भगवान् दृष्ट्वा सह शर्वेण तां तनुम् ।
स्वच्छां मरकतश्यामां कञ्जगर्भारुणेक्षणाम् ॥ ३ ॥
तप्तहेमावदातेन लसत्कौशेयवाससा ।
प्रसन्नचारुसर्वांगीं सुमुखीं सुन्दरभ्रुवम् ॥ ४ ॥
महामणिकिरीटेन केयूराभ्यां च भूषिताम् ।
कर्णाभरणनिर्भात कपोलश्रीमुखाम्बुजाम् ॥ ५ ॥
काञ्चीकलापवलय हारनूपुरशोभिताम् ।
कौस्तुभाभरणां लक्ष्मीं बिभ्रतीं वनमालिनीम् ॥ ६ ॥
सुदर्शनादिभिः स्वास्त्रैः मूर्तिमद् भिरुपासिताम् ।
तुष्टाव देवप्रवरः सशर्वः पुरुषं परम्   
सर्वामरगणैः साकं सर्वांगैरवनिं गतैः ॥ ७ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! जब देवताओंने सर्वशक्तिमान् भगवान्‌ श्रीहरिकी इस प्रकार स्तुति की, तब वे उनके बीचमें ही प्रकट हो गये। उनके शरीरकी प्रभा ऐसी थी, मानो हजारों सूर्य एक साथ ही उग गये हों ॥ १ ॥ भगवान्‌की उस प्रभासे सभी देवताओंकी आँखें चौंधिया गयीं। वे भगवान्‌को तो क्याआकाश, दिशाएँ, पृथ्वी और अपने शरीरको भी न देख सके ॥ २ ॥ केवल भगवान्‌ शङ्कर और ब्रह्माजीने उस छबिका दर्शन किया। बड़ी ही सुन्दर झाँकी थी। मरकतमणि (पन्ने)के समान स्वच्छ श्यामल शरीर, कमलके भीतरी भागके समान सुकुमार नेत्रोंमें लाल-लाल डोरियाँ और चमकते हुए सुनहले रंगका रेशमी पीताम्बर ! सर्वाङ्गसुन्दर शरीरके रोम- रोमसे प्रसन्नता फूटी पड़ती थी। धनुषके समान टेढ़ी भौंहें और बड़ा ही सुन्दर मुख। सिरपर महा- मणिमय किरीट और भुजाओंमें बाजूबंद। कानोंके झलकते हुए कुण्डलोंकी चमक पडऩेसे कपोल और भी सुन्दर हो उठते थे, जिससे मुखकमल खिल उठता था। कमरमें करधनीकी लडिय़ाँ, हाथोंमें कंगन, गलेमें हार और चरणोंमें नूपुर शोभायमान थे। वक्ष:स्थलपर लक्ष्मी और गलेमें कौस्तुभमणि तथा वनमाला सुशोभित थीं ॥ ३६ ॥ भगवान्‌ के निज अस्त्र सुदर्शन चक्र आदि मूर्तिमान् होकर उनकी सेवा कर रहे थे। सभी देवताओंने पृथ्वीपर गिरकर साष्टाङ्ग प्रणाम किया फिर सारे देवताओंको साथ ले शङ्करजी तथा ब्रह्माजी परम पुरुष भगवान्‌की स्तुति करने लगे ॥ ७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏

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  3. जय श्री हरि जय हो प्रभु जी

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  4. 🌹🍂🌾जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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