॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०२)
देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना
श्रीब्रह्मोवाच
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अजातजन्मस्थितिसंयमाया
गुणाय निर्वाणसुखार्णवाय ।
अणोरणिम्नेऽपरिगण्यधाम्ने
महानुभावाय नमो नमस्ते ॥ ८ ॥
रूपं
तवैतत् पुरुषर्षभेज्यं
श्रेयोऽर्थिभिर्वैदिकतांत्रिकेण ।
योगेन
धातः सह नस्त्रिलोकान्
पश्याम्यमुष्मिन् नु ह विश्वमूर्तौ ॥ ९ ॥
ब्रह्माजीने कहा—जो जन्म,
स्थिति और प्रलयसे कोई सम्बन्ध नहीं रखते, जो प्राकृत गुणोंसे रहित एवं मोक्षस्वरूप परमानन्दके महान्
समुद्र हैं,
जो सूक्ष्मसे भी सूक्ष्म हैं और जिनका स्वरूप अनन्त है—उन परम ऐश्वर्यशाली प्रभुको हमलोग बार-बार नमस्कार करते हैं
॥ ८ ॥ पुरुषोत्तम ! अपना कल्याण चाहनेवाले साधक वेदोक्त एवं पाञ्चरात्रोक्त विधिसे
आपके इसी स्वरूपकी उपासना करते हैं। मुझे भी रचनेवाले प्रभो ! आपके इस विश्वमय
स्वरूपमें मुझे समस्त देवगणोंके सहित तीनों लोक दिखायी दे रहे हैं ॥ ९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंBhagwan ki maya badi vichitra hai jise tark kutark karane wale nahi jante 🪷🪷🪷🌷🙏🌷🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंआप. के शेयर किये जाने वाले ब्लॉग साधको एवं भक्तो के लिए परम मंगल कारी होते है....
जवाब देंहटाएंगजानंद शर्मा राजस्थान
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि जय हो प्रभु जी
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌹जय श्री हरि: !! 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हे अनंत कोटि ब्रह्माण्ड के स्वामी
सृष्टि के कण कण में व्याप्त परम् ब्रह्म परमेश्वर को सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: वंदन🙏🙏