गुरुवार, 12 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०३)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०३)

देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना

त्वय्यग्र आसीत् त्वयि मध्य आसीत्
     त्वय्यन्त आसीत् इदमात्मतंत्रे ।
त्वं आदिरन्तो जगतोऽस्य मध्यं
     घटस्य मृत्स्नेव परः परस्मात् ॥ १० ॥
त्वं माययात्माश्रयया स्वयेदं
     निर्माय विश्वं तदनुप्रविष्टः ।
पश्यन्ति युक्ता मनसा मनीषिणो
     गुणव्यवायेऽप्यगुणं विपश्चितः ॥ ११ ॥

आपमें ही पहले यह जगत् लीन था, मध्यमें भी यह आपमें ही स्थित है और अन्तमें भी यह पुन: आपमें ही लीन हो जायगा। आप स्वयं कार्य-कारणसे परे परम स्वतन्त्र हैं। आप ही इस जगत्के आदि, अन्त और मध्य हैंवैसे ही जैसे घड़ेका आदि, मध्य और अन्त मिट्टी है ॥ १० ॥ आप अपने ही आश्रय रहनेवाली अपनी मायासे इस संसारकी रचना करते हैं और इसमें फिरसे प्रवेश करके अन्तर्यामीके रूपमें विराजमान होते हैं। इसीलिये विवेकी और शास्त्रज्ञ पुरुष बड़ी सावधानीसे अपने मनको एकाग्र करके इन गुणोंकी, विषयोंकी भीड़में भी आपके निर्गुण स्वरूपका ही साक्षात्कार करते हैं ॥ ११ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




5 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏

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  3. Om namo narayanay 🙏🙏🙏🙏

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  4. 🌼💖🌷जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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