॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०४)
देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना
यथाग्निमेधस्यमृतं
च गोषु
भुव्यन्नमम्बूद्यमने च वृत्तिम् ।
योगैर्मनुष्या
अधियन्ति हि त्वां
गुणेषु बुद्ध्या कवयो वदन्ति ॥ १२ ॥
तं
त्वां वयं नाथ समुज्जिहानं
सरोजनाभातिचिरेप्सितार्थम् ।
दृष्ट्वा
गता निर्वृतमद्य सर्वे
गजा दवार्ता इव गाङ्गमम्भः ॥ १३ ॥
जैसे मनुष्य युक्तिके द्वारा लकड़ीसे आग, गौसे अमृतके समान दूध, पृथ्वीसे अन्न तथा जल और व्यापारसे अपनी आजीविका प्राप्त कर लेते हैं—वैसे ही विवेकी पुरुष भी अपनी शुद्ध बुद्धिसे भक्तियोग, ज्ञानयोग आदिके द्वारा आपको इन विषयोंमें ही प्राप्त कर
लेते हैं और अपनी अनुभूतिके अनुसार आपका वर्णन भी करते हैं ॥ १२ ॥ कमलनाभ ! जिस
प्रकार दावाग्नि से झुलसता हुआ हाथी गङ्गाजल में डुबकी लगाकर सुख और शान्ति का
अनुभव करने लगता है,
वैसे ही आपके आविर्भावसे हमलोग परम सुखी और शान्त हो गये
हैं। स्वामी ! हमलोग बहुत दिनोंसे आपके दर्शनोंके लिये अत्यन्त लालायित हो रहे थे
॥ १३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏
जवाब देंहटाएं🌷💖🌹जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण हरि नारायण हरि
नारायण 🙏🙏