शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०५)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०५)

देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना

स त्वं विधत्स्वाखिललोकपाला
     वयं यदर्थास्तव पादमूलम् ।
समागतास्ते बहिरन्तरात्मन्
     किं वान्यविज्ञाप्यमशेषसाक्षिणः ॥ १४ ॥
अहं गिरित्रश्च सुरादयो ये
     दक्षादयोऽग्नेरिव केतवस्ते ।
किं वा विदामेश पृथग्विभाता
     विधत्स्व शं नो द्विजदेवमंत्रम् ॥ १५ ॥

आप ही हमारे बाहर और भीतर के आत्मा हैं। हम सब लोकपाल जिस उद्देश्य से आपके चरणों की शरणमें आये हैं, उसे आप कृपा करके पूर्ण कीजिये। आप सबके साक्षी हैं, अत: इस विषय में हम लोग आपसे और क्या निवेदन करें ॥ १४ ॥ प्रभो ! मैं शङ्कर जी, अन्य देवता, ऋषि और दक्ष आदि प्रजापतिसब-के-सब अग्नि से  अलग हुई चिनगारी की तरह आपके ही अंश हैं और अपनेको आपसे अलग मानते हैं। ऐसी स्थितिमें प्रभो ! हमलोग समझ ही क्या सकते हैं। ब्राह्मण और देवताओंके कल्याणके लिये जो कुछ करना आवश्यक हो, उसका आदेश आप ही दीजिये और आप वैसा स्वयं कर भी लीजिये ॥ १५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌷🌺🌾जय श्री हरि: !! 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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