॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०८)
देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना
यूयं
तदनुमोदध्वं यदिच्छन्ति असुराः सुराः ।
न
संरम्भेण सिध्यन्ति सर्वार्थाः सान्त्वया यथा ॥ २४ ॥
न
भेतव्यं कालकूटाद् विषात् जलधिसम्भवात् ।
लोभः
कार्यो न वो जातु रोषः कामस्तु वस्तुषु ॥ २५ ॥
(श्रीभगवान् कह
रहे हैं) देवताओ ! असुरलोग तुमसे जो-जो चाहें, सब स्वीकार कर लो। शान्ति से सब काम बन जाते हैं, क्रोध करने से कुछ नहीं होता ॥ २४ ॥ पहले समुद्र से कालकूट
विष निकलेगा,
उससे डरना नहीं। और किसी भी वस्तु के लिये कभी भी लोभ न
करना। पहले तो किसी वस्तु की कामना ही नहीं करनी चाहिये, परंतु यदि कामना हो और वह पूरी न हो , तो क्रोध तो करना ही नहीं चाहिये ॥ २५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंॐ श्री वासुदेवाय नमः
जवाब देंहटाएं🌹🍂🌾जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण