शनिवार, 14 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०८)




॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०८)

देवताओं और दैत्योंका मिलकर समुद्रमन्थन
के लिये उद्योग करना

यूयं तदनुमोदध्वं यदिच्छन्ति असुराः सुराः ।
न संरम्भेण सिध्यन्ति सर्वार्थाः सान्त्वया यथा ॥ २४ ॥
न भेतव्यं कालकूटाद् विषात् जलधिसम्भवात् ।
लोभः कार्यो न वो जातु रोषः कामस्तु वस्तुषु ॥ २५ ॥

(श्रीभगवान्‌ कह  रहे हैं) देवताओ ! असुरलोग तुमसे जो-जो चाहें, सब स्वीकार कर लो। शान्ति से सब काम बन जाते हैं, क्रोध करने से कुछ नहीं होता ॥ २४ ॥ पहले समुद्र से कालकूट विष निकलेगा, उससे डरना नहीं। और किसी भी वस्तु के लिये कभी भी लोभ न करना। पहले तो किसी वस्तु की कामना ही नहीं करनी चाहिये, परंतु यदि कामना हो और वह पूरी न हो , तो क्रोध तो करना ही नहीं चाहिये ॥ २५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



5 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  3. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  4. ॐ श्री वासुदेवाय नमः

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  5. 🌹🍂🌾जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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