सोमवार, 2 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – चौथा अध्याय..(पोस्ट०१)




॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौथा अध्याय..(पोस्ट०१)

गज और ग्राह का पूर्वचरित्र तथा उनका उद्धार

श्रीशुक उवाच
तदा देवर्षिगन्धर्वा ब्रह्मेशानपुरोगमाः
मुमुचुः कुसुमासारं शंसन्तः कर्म तद्धरेः ||||
नेदुर्दुन्दुभयो दिव्या गन्धर्वा ननृतुर्जगुः
ऋषयश्चारणाः सिद्धास्तुष्टुवुः पुरुषोत्तमम् ||||
योऽसौ ग्राहः स वै सद्यः परमाश्चर्यरूपधृक्
मुक्तो देवलशापेन हूहूर्गन्धर्वसत्तमः ||||
प्रणम्य शिरसाधीशमुत्तमश्लोकमव्ययम्
अगायत यशोधाम कीर्तन्यगुणसत्कथम् ||||
सोऽनुकम्पित ईशेन परिक्रम्य प्रणम्य तम्
लोकस्य पश्यतो लोकं स्वमगान्मुक्तकिल्बिषः ||||

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! उस समय ब्रह्मा, शङ्कर आदि देवता, ऋषि और गन्धर्व श्रीहरि भगवान्‌के इस कर्मकी प्रशंसा करने लगे तथा उनके ऊपर फूलोंकी वर्षा करने लगे ॥ १ ॥ स्वर्गमें दुन्दुभियाँ बजने लगीं, गन्धर्व नाचने-गाने लगे; ऋषि, चारण और सिद्धगण भगवान्‌ पुरुषोत्तमकी स्तुति करने लगे ॥ २ ॥ इधर वह ग्राह तुरंत ही परम आश्चर्यमय दिव्य शरीरसे सम्पन्न हो गया। यह ग्राह इसके पहले हूहूनामका एक श्रेष्ठ गन्धर्व था। देवलके शापसे उसे यह गति प्राप्त हुई थी। अब भगवान्‌की कृपासे वह मुक्त हो गया ॥ ३ ॥ उसने सर्वेश्वर भगवान्‌के चरणोंमें सिर रखकर प्रणाम किया, इसके बाद वह भगवान्‌के सुयशका गान करने लगा। वास्तवमें अविनाशी भगवान्‌ ही सर्वश्रेष्ठ कीर्तिसे सम्पन्न हैं। उन्हींके गुण और मनोहर लीलाएँ गान करने-योग्य हैं ॥ ४ ॥ भगवान्‌के कृपापूर्ण स्पर्शसे उसके सारे पाप-ताप नष्ट हो गये। उसने भगवान्‌की परिक्रमा करके उनके चरणोंमें प्रणाम किया और सबके देखते-देखते अपने लोककी यात्रा की ॥ ५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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