॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट०८)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
पादौ महीयं स्वकृतैव यस्य
चतुर्विधो यत्र
हि भूतसर्गः ।
स वै महापूरुष आत्मतन्त्रः
प्रसीदतां
ब्रह्म महाविभूतिः ॥ ३२ ॥
अम्भस्तु यद्रेत उदारवीर्यं
सिध्यन्ति
जीवन्त्युत वर्धमानाः ।
लोका स्त्रयोऽथाखिललोकपालाः
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ३३ ॥
उन्हींकी बनायी हुई यह पृथ्वी उनका चरण है। इसी पृथ्वीपर
जरायुज,
अण्डज, स्वेदज और
उद्भिज्ज—ये चार प्रकारके प्राणी रहते हैं। वे परम स्वतन्त्र, परम ऐश्वर्यशाली पुरुषोत्तम परब्रह्म हमपर प्रसन्न हों ॥ ३२
॥ यह परम शक्तिशाली जल उन्हींका वीर्य है। इसीसे तीनों लोक और समस्त लोकोंके
लोकपाल उत्पन्न होते,
बढ़ते और जीवित रहते हैं। वे परम ऐश्वर्यशाली परब्रह्म हमपर
प्रसन्न हों ॥ ३३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएं🌺🌾💐जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
जय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंOm namo bhagvate vasudevai!
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