॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट०९)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
सोमं मनो यस्य समामनन्ति
दिवौकसां यो
बलमन्ध आयुः ।
ईशो नगानां प्रजनः प्रजानां
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ३४ ॥
अग्निर्मुखं यस्य तु जातवेदा
जातः
क्रियाकाण्डनिमित्तजन्मा ।
अन्तःसमुद्रेऽनुपचन्स्वधातून्
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ३५ ॥
श्रुतियाँ कहती हैं कि चन्द्रमा उस प्रभुका मन है। यह
चन्द्रमा समस्त देवताओंका अन्न, बल एवं आयु
है। वही वृक्षोंका सम्राट् एवं प्रजाकी वृद्धि करनेवाला है। ऐसे मनको स्वीकार
करनेवाले परम ऐश्वर्यशाली प्रभु हमपर प्रसन्न हों ॥ ३४ ॥ अग्नि प्रभुका मुख है।
इसकी उत्पत्ति ही इसलिये हुई है कि वेदके यज्ञ-यागादि कर्मकाण्ड पूर्णरूपसे
सम्पन्न हो सकें। यह अग्नि ही शरीरके भीतर जठराग्निरूप से और समुद्र के भीतर
बड़वानलके रूपसे रहकर उनमें रहनेवाले अन्न, जल आदि धातुओंका पाचन करता रहता है और समस्त द्रव्योंकी उत्पत्ति भी उसीसे हुई
है। ऐसे परम ऐश्वर्यशाली भगवान् हमपर प्रसन्न हों ॥ ३५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagvate vasudevai!
जवाब देंहटाएं🌹🍂🌼जय श्री हरि !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण