॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ
अध्याय..(पोस्ट१०)
देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान् की स्तुति
यच्चक्षुरासीत्तरणिर्देवयानं
त्रयीमयो
ब्रह्मण एष धिष्ण्यम् ।
द्वारं च मुक्तेरमृतं च मृत्युः
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ३६ ॥
प्राणादभूद् यस्य चराचराणां
प्राणः सहो
बलमोजश्च वायुः ।
अन्वास्म सम्राजमिवानुगा वयं
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ३७ ॥
श्रोत्राद् दिशो यस्य हृदश्च खानि
प्रजज्ञिरे खं
पुरुषस्य नाभ्याः ।
प्राणेन्द्रियात्मासुशरीरकेतः
प्रसीदतां नः स
महाविभूतिः ॥ ३८ ॥
जिनके द्वारा जीव देवयानमार्गसे ब्रह्मलोकको प्राप्त होता
है,
जो वेदोंकी साक्षात् मूर्ति और भगवान्के ध्यान करनेयोग्य
धाम हैं,
जो पुण्यलोकस्वरूप होनेके कारण मुक्तिके द्वार एवं अमृतमय
हैं और कालरूप होनेके कारण मृत्यु भी हैं—ऐसे सूर्य जिनके नेत्र हैं, वे परम
ऐश्वर्यशाली भगवान् हमपर प्रसन्न हों ॥ ३६ ॥ प्रभुके प्राणसे ही चराचरका प्राण
तथा उन्हें मानसिक,
शारीरिक और इन्द्रिय सम्बन्धी बल देनेवाला वायु प्रकट हुआ
है। वह चक्रवर्ती सम्राट् है, तो
इन्द्रियोंके अधिष्ठातृ-देवता हम सब उसके अनुचर। ऐसे परम ऐश्वर्यशाली भगवान् हमपर
प्रसन्न हों ॥ ३७ ॥ जिनके कानोंसे दिशाएँ, हृदयसे इन्द्रियगोलक और नाभिसे वह आकाश उत्पन्न हुआ है, जो पाँचों प्राण (प्राण, अपान,
उदान, समान और
व्यान),
दसों इन्द्रिय, मन,
पाँचों असु (नाग, कूर्म,
कृकल, देवदत्त और
धनञ्जय) एवं शरीरका आश्रय है—वे परम
ऐश्वर्यशाली भगवान् हमपर प्रसन्न हों ॥ ३८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
Om namo bhagvate vasudevai!
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