शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान्‌ की स्तुति

अजस्य चक्रं त्वजयेर्यमाणं
     मनोमयं पञ्चदशारमाशु ।
त्रिनाभि विद्युच्चलमष्टनेमि
     यदक्षमाहुस्तमृतं प्रपद्ये ॥ २८ ॥
य एकवर्णं तमसः परं तद्
     अलोकमव्यक्तमनन्तपारम् ।
आसां चकारोपसुपर्णमेनं
     उपासते योगरथेन धीराः ॥ २९ ॥

यह शरीर जीवका एक मनोमय चक्र (रथका पहिया) है। दस इन्द्रिय और पाँच प्राणये पंद्रह इसके अरे हैं। सत्त्व, रज और तमये तीन गुण इसकी नाभि हैं। पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकारये आठ इसमें नेमि (पहियेका घेरा) हैं। स्वयं माया इसका सञ्चालन करती है और यह बिजलीसे भी अधिक शीघ्रगामी है। इस चक्रके धुरे हैं स्वयं परमात्मा। वे ही एकमात्र सत्य हैं। हम उनकी शरणमें हैं ॥ २८ ॥ जो एकमात्र ज्ञानस्वरूप, प्रकृतिसे परे एवं अदृश्य हैं; जो समस्त वस्तुओंके मूलमें स्थित अव्यक्त हैं और देश, काल अथवा वस्तुसे जिनका पार नहीं पाया जा सकतावही प्रभु इस जीवके हृदयमें अन्तर्यामीरूपसे विराजमान रहते हैं। विचारशील मनुष्य भक्तियोगके द्वारा उन्हींकी आराधना करते हैं ॥ २९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




6 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री हरि जय हो प्रभु जी

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  3. 🌺🌿💐जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्

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  4. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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