शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और
ब्रह्माकृत भगवान्‌ की स्तुति

श्रीब्रह्मोवाच -
अविक्रियं सत्यमनन्तमाद्यं
     गुहाशयं निष्कलमप्रतर्क्यम् ।
मनोऽग्रयानं वचसानिरुक्तं
     नमामहे देववरं वरेण्यम् ॥ २६ ॥
विपश्चितं प्राणमनोधियात्मनां
     अर्थेन्द्रियाभासमनिद्रमव्रणम् ।
छायातपौ यत्र न गृध्रपक्षौ
     तमक्षरं खं त्रियुगं व्रजामहे ॥ २७ ॥

ब्रह्माजी बोलेभगवन् ! आप निर्विकार, सत्य, अनन्त, आदिपुरुष, सबके हृदयमें अन्तर्यामी- रूपसे विराजमान, अखण्ड एवं अतक्र्य हैं। मन जहाँ-जहाँ जाता है, वहाँ-वहाँ आप पहलेसे ही विद्यमान रहते हैं। वाणी आपका निरूपण नहीं कर सकती। आप समस्त देवताओंके आराधनीय और स्वयंप्रकाश हैं। हम सब आपके चरणोंमें नमस्कार करते हैं ॥ २६ ॥ आप प्राण, मन, बुद्धि और अहंकारके ज्ञाता हैं। इन्द्रियाँ और उनके विषय दोनों ही आपके द्वारा प्रकाशित होते हैं। अज्ञान आपका स्पर्श नहीं कर सकता। प्रकृतिके विकार मरने-जीनेवाले शरीरसे भी आप रहित हैं। जीवके दोनों पक्ष अविद्या और विद्या आपमें बिलकुल ही नहीं हैं। आप अविनाशी और सुखस्वरूप हैं। सत्ययुग, त्रेता और द्वापरमें तो आप प्रकटरूपसे ही विराजमान रहते हैं। हम सब आपकी शरण ग्रहण करते हैं ॥ २७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


8 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐

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  2. जय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐

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  3. जय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐

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  4. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जी

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  5. 🌸🌹🎋जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्

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  6. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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